भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मद अब देत करेजे जारें / ईसुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईसुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatBu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | {{ | + | {{KKLokRachna |
+ | |भाषा=बुन्देली | ||
|रचनाकार=ईसुरी | |रचनाकार=ईसुरी | ||
− | |||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} |
16:30, 1 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
मद अब देत करेजे जारें
आई बसन्त बहारें।
सीतल पवन लगत है ऐसी,
मानो अगन की झारें।
बोल-कोकिला लगें तीर से
लेवें प्राण निकारे।
आमन-मौर झोंर के ऊपर
भोंर करत गुन्जारे।
ईसुर पाती देव पीतम खाँ
घर खों बेग पधारें।