भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मन तड़पत हरि दरसन को आज / भजन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKBhaktiKavya |रचनाकार= }} मन तड़पत हरि दरसन को आज<br> मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज<br> आ,...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {{ | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKBhajan | ||
|रचनाकार= | |रचनाकार= | ||
}} | }} | ||
− | |||
मन तड़पत हरि दरसन को आज<br> | मन तड़पत हरि दरसन को आज<br> | ||
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज<br> | मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज<br> |
20:50, 17 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
मन तड़पत हरि दरसन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियो लाज, मन तड़पत॥।
तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी
हमरी ओर नज़र कब होगी
सुन मोरे व्याकुल मन की बात, तड़पत हरी दरसन॥।
बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ
दीजो दान हरी गुन गाऊँ
सब गुनी जन पे तुम्हारा राज, तड़पत हरी॥।
मुरली मनोहर आस न तोड़ो
दुख भंजन मोरे साथ न छोड़ो
मोहे दरसन भिक्षा दे दो आज दे दो आज, ॥।