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"मातंगी / अंकावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

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दश दिश व्याप्त प्रणव त्रिवृता व्याहृति सप्तक सह व्यक्त
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श्याम वरन, दृग अरून, तरुन शशि शीश विराजित
दश अवतार भार भूतल केर हरण हेतु प्रसक्त
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तीनि नयन, मधुवयन, रतन सिंहासन राजित
मन समेत दश कर्म ज्ञान इन्द्रिय कृत दशविध पाप
+
करथि चारि भुज असि - खेटक पाशांऽकुश धारन
विभु मानव दश रूप हतल महिमेँ, महि मे नित व्याप
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मातंगी पद भजिअ चहिअ यदि भय निवारन
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मन मतंग उत्तंग अति अंकुश ज्ञान क विमल मति
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उन्मद उद्गत प्रेम रति मातंगी पद - कमल गति
  
1.  मीन -
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कमला -
महाप्रलय मे जलधि बीच छल डुबइत पृथ्वी तत्त्व
+
कनक कान्ति, कौशेय वसन भूषित, नितम्बिनी
बीज मात्र गलइत छल बचइत कोना जीव निःसत्त्व?
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कमल पानि वर - अभय दानि, सिर हिम किरीटिनी
श्रुति क यावतो ऋचा असुर भौतिक क द्वन्द्व पड़ि लुप्त
+
युग्म - युगल करिवर - कर कनक - कलश जल धारा
आदि मानव क नौका डूबल सृष्टि मात्र छल सुप्त
+
स्नपित नित्य कमला वितरथि सम्पदा उदारा
अणु रहितहुँ ब्रह्माण्ड भाण्ड केँ भरि निज रूपेँ पीन
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कसलासनि कमलालया कमल किछु जनि आलया
महामीन अवतार करथि उद्धार वेद-पथ छीन
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तनि पद - कमल आश्रया उरसा शिरसा मालया
 
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2.  कक्छप -
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अमृत विष क मिश्रण सँ जगत क सागर सलिल विषाक्त
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विनु मंथन नहि निकसत गुण-मणि तत्त्व-रत्न विख्यात
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शेष रज्जु गुण, मंदर मंथ, असुर-सुर बिच संघर्ष
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फलित, भरथु पृथ्वी-तल केँ पुनि श्रमबल सकल सहर्ष
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कमठ पीठ आधारक बिनु नहि सभव मथन कर्म
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कच्छप रूप जगत्पति पति राखथु थपइत श्रुति धर्म।।
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3.  वराह -
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अवनी लीन महासागर मे अखिल जीव दिग्-भ्रान्त
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जड़ जल तत्त्व उमड़ि आयल जत भूतल-सूतल श्रान्त
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कनकलोचन क दृष्टि सृष्टि केर करइत नित संहार
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दिशि-दिशि एक शब्द-धुनि सुनि पड़इत छल हाहाकार
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महावराह रूप धय दन्तावलिपर धरणी धारि
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पुनरुद्वार करी पुनि धरतीपर श्रुति-मत संचारि
+
 
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4.  नरसिंह -
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नरक ज्ञान निर्मल, पशु सिंह क सिंहक बल विज्ञान
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विनु समन्वयेँ प्रह्लादित नहि जगती केर कल्यान
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यदि हिरण्यहि क उपवर्हण लय माथ सुप्त मनुजत्व
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निश्चय लोक शोक सँ स्तंभित ज्वलित वह्नि निःसत्त्व
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नर-हरि बनि नख उर विदारि कनकक अणु कण विस्फोट
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करइत, हरइत जगत क पीड़ा, प्रभु महिमा बड़ि गोट
+
 
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5. वामन -
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दान धर्महु क मर्म दया थिक, अहंकार असुरत्व
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साधन शुभ अशुभहि मे परिणत, यदि च साध्य निज स्वत्व
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कर्म रहौ कतबहु रुचि-रोचित शोचनीय यदि छù
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यज्ञ अज्ञहि क थिक जहि मे नहि हो साधित अध्यात्म
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वलि क कलेवर लंबित कतबहु, वामन लघु पद नापि
+
देथु पठाय पताल युद्ध बिनु, मति बल सुर हित थापि
+
 
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6. परशुराम -
+
रक्षा - दीक्षा पाबि चलथि पथ भक्षणहि क धय नीति
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बुझथि जे थिक पद योग क हित, भोग क पथ अनरीति
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ज्ञान क मस्तक सँ बढ़ि-चढ़ि बुझि सहस गुणित भुज-शक्ति
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तनिक बिनाशक हित नित परशु उठाबथि पुरुष प्रसक्त
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सप्त व्याहृति क त्रिपदा पढ़इत विप्र राम निश्छत्र
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धरइत छथि अवतार, तनिक पद चढ़बी श्रद्धा-पत्र
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7.  राम -
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जन्म महीसुर - कुल लय शिव - पद रखितहुँ भक्ति अनन्त
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किन्तु रूप - लम्पट कामुक निर्दय खल प्रकृति दुरन्त
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जनस्थान केँ जारि-उजाड़ि बसावय असुर स्थान
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प्रतिष्ठान ऋषि - मुनि विदित तकरा बनबय समसान
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दशमुख-वध हित दशरथ - सुत श्रीराम तानि धनु-वाण
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युग-युग जनमि करथि निरवधि वधि सकुल असुर निष्प्राण
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8.  कृष्ण -
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योग नष्ट छल चलित पुरातन, बंधु - बधु दुर्योग
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धर्म क क्षेत्र कुरु क क्षेत्रहु छल द्वेष - राग केर रोग
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छिन्न - भिन्न भारत अनुशासन, शान्ति क पर्व न शेष
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क्रान्ति हेतु श्रीकृष्ण पांचजन्य क ध्वनि फूकल देश
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नाश नियत छल निर्माण क हित पूर्ण रूप अवतीर्ण
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एकतन्त्रमय कयल महाभारत जे कीर्ण-विकीर्ण
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9.  बुद्ध -
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यज्ञ - वेदिका पर सर्वस्व समर्पण होम विधान
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बलि देव’क थिक स्वार्थ-भोग केर श्रौत मर्म संधान
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निगम मंत्र अछि आगम तंत्र क रूप बिसरि गेल लोक
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बोध देल पुनि बुद्ध आबि, सहजहिँ हिंसा केर रोक
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जा धरि जातक सत्त्व न बोधेँ परम बुद्ध बनि जाय
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ता धरि बुद्धि बोध देबा लय बुद्धक चलत निकाय
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10.  कल्कि -
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नव-नव अवतरणहु नहि देखल, भेल म्लेच्छ-पथ रुद्ध
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दिश-दिश लुबधल लुब्धक दल, धरती धरि नहि परिशुद्ध
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तखन दिव्य करवाल गहल कर, करबा लय संहार
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कलि क कलुष - कल्मष मेटबा लय दशम कल्कि अवतार
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नहि अनाथ क्यौ जगन्नाथ युग - देवता क अवतार
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जगत कलेश क लेश न शेष अशेष शक्ति संचार
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15:05, 20 मई 2015 के समय का अवतरण

श्याम वरन, दृग अरून, तरुन शशि शीश विराजित
तीनि नयन, मधुवयन, रतन सिंहासन राजित
करथि चारि भुज असि - खेटक पाशांऽकुश धारन
मातंगी पद भजिअ चहिअ यदि भय क निवारन
मन मतंग उत्तंग अति अंकुश ज्ञान क विमल मति
उन्मद उद्गत प्रेम रति मातंगी पद - कमल गति

कमला -
कनक कान्ति, कौशेय वसन भूषित, नितम्बिनी
कमल पानि वर - अभय दानि, सिर हिम किरीटिनी
युग्म - युगल करिवर - कर कनक - कलश जल धारा
स्नपित नित्य कमला वितरथि सम्पदा उदारा
कसलासनि कमलालया कमल न किछु जनि आलया
तनि पद - कमल क आश्रया उरसा शिरसा मालया