भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फ्रेम मुक्त / इमरोज़ / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इमरोज़ |अनुवादक=हरकीरत हकीर |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatGhazal}}
+
{{KKCatNazm}}
 
<poem>
 
<poem>
 
रात सपने में इक सपना देखा  
 
रात सपने में इक सपना देखा  

15:32, 11 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

रात सपने में इक सपना देखा
मोनालिसा जैसी खुबसूरत लड़की
इक फ्रेम में लगी दीवार पर टंगी
मेरी और देख -देख कर मुस्कुरा रही थी
जब मैंने उसे देखती को देखा वह भरी आँखों से
मुस्कुरा कर देखती हुई बोली
मैंने देख कर तुझे देख लिया हैं
तेरा ही इन्तजार था
अपना हाथ पकड़ा मैं फ्रेम मुक्त होना चाहती हूँ
तेरे हाथों में आकर फ़िक्र मुक्त भी
हमें फ्रेम मुक्त देख देखकर फ्रेम मुस्कुरा रहा था ..
और हम हँसते जा रहे थे...
फ्रेम पेटेंड तस्वीरों के लिए होते हैं
म्यूजियम में टांगने के लिए
और संस्कार चलती फिरती तस्वीरों के लिए होते हैं
समाज की दीवारों में टांगने के लिए...
मैं सुबह की चाय पी रहा था
कि उसका बड़ा खुश मैसेज मिला
कि वह फ्रेम मुक्त होकर आ रही है