"कसान्द्रा / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर
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'''आन्ना अख़्मातवा के लिए''' | '''आन्ना अख़्मातवा के लिए''' | ||
− | याद करता हूँ कसान्द्रा मैं, जब वे सुन्दर क्षण | + | याद करता हूँ कसान्द्रा<ref>यूनानी मिथक परम्परा में कसान्द्रा ट्रॉय के अन्तिम सम्राट प्रियम की पुत्री थी, जो भविष्य में घटने वाली घटनाओं को पहले से जान लेती थी। लेकिन ट्रॉय के शत्रु अखेई राज्य के मन्त्रियों ने कुछ ऐसी चाल चली कि ट्रॉय के लोगों ने कसान्द्रा की बातों पर विश्वास करना बन्द कर दिया और अन्ततः वे अखेई से युद्ध में हार गए।</ref> मैं, जब वे सुन्दर क्षण |
तेरे होठों का स्वाद और आँखों का दीवानापन | तेरे होठों का स्वाद और आँखों का दीवानापन | ||
उत्सवी लगे मुझे अपनी रातों का जागरण | उत्सवी लगे मुझे अपनी रातों का जागरण | ||
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कभी जब होगी यहाँ, इस राजधानी में निर्लज्ज | कभी जब होगी यहाँ, इस राजधानी में निर्लज्ज | ||
− | निवा-नदी किनारे पे, स्कीफ़-उत्सव की सजधज | + | निवा-नदी किनारे पे, स्कीफ़-उत्सव<ref>पहली से तीसरी शताब्दी के बीच काले सागर के उत्तरी तटवर्ती इलाके में रहने वाली जातियों को स्कीफ़ कहा जाता था।</ref> की सजधज |
कर्कश संगीत बजेगा, होगा फूहड़ नृत्यों का ज़ोर | कर्कश संगीत बजेगा, होगा फूहड़ नृत्यों का ज़ोर | ||
सुन्दरी के सिर से खींचेंगे, चुन्नी कुछ पापी घोर | सुन्दरी के सिर से खींचेंगे, चुन्नी कुछ पापी घोर | ||
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प्यार किया मैंने तुझे, पर विजय लगे यह लूली | प्यार किया मैंने तुझे, पर विजय लगे यह लूली | ||
चुभता है जाड़ा इस वर्ष, यह लगे है जैसे सूली | चुभता है जाड़ा इस वर्ष, यह लगे है जैसे सूली | ||
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+ | दूर वहाँ चौराहे पर, जहाँ खड़ी है गाड़ी फ़ौजी | ||
+ | देखा मैंने वह आदमी, जो लगता है मनमौजी | ||
+ | उन्मत्त भेड़ियों के मुँह देखो, लगा है लाल ख़ून | ||
+ | चीख़ रहे हैं वे ज़ोर से -- आज़ादी, समता, कानून | ||
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+ | पर शान्त है तू कसान्दा, घर में लेटी बीमार | ||
+ | और मैं बेहद बेचैन, प्रिया, क्यों बदल रहा संसार | ||
+ | आकाशगंगा में आया होगा, सूरज न जाने कब | ||
+ | सैकड़ों वर्ष पहले भी उससे ज्योति पाते थे सब | ||
'''रचनाकाल''' : 31 दिसम्बर 1917 | '''रचनाकाल''' : 31 दिसम्बर 1917 | ||
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14:28, 31 जुलाई 2015 के समय का अवतरण
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आन्ना अख़्मातवा के लिए
याद करता हूँ कसान्द्रा<ref>यूनानी मिथक परम्परा में कसान्द्रा ट्रॉय के अन्तिम सम्राट प्रियम की पुत्री थी, जो भविष्य में घटने वाली घटनाओं को पहले से जान लेती थी। लेकिन ट्रॉय के शत्रु अखेई राज्य के मन्त्रियों ने कुछ ऐसी चाल चली कि ट्रॉय के लोगों ने कसान्द्रा की बातों पर विश्वास करना बन्द कर दिया और अन्ततः वे अखेई से युद्ध में हार गए।</ref> मैं, जब वे सुन्दर क्षण
तेरे होठों का स्वाद और आँखों का दीवानापन
उत्सवी लगे मुझे अपनी रातों का जागरण
परेशान होता हूँ हालाँकि करके तेरा स्मरण
और दिसम्बर, उन्नीस सौ सत्रह का यह साल
खो दिया है सब कुछ हमने, बहुत बुरा है हाल
किसी-एक को जनता ने लूटा, किया हाल-बेहाल
दूजे ने लूटा ख़ुद को ही लुटा दिया सब माल
कभी जब होगी यहाँ, इस राजधानी में निर्लज्ज
निवा-नदी किनारे पे, स्कीफ़-उत्सव<ref>पहली से तीसरी शताब्दी के बीच काले सागर के उत्तरी तटवर्ती इलाके में रहने वाली जातियों को स्कीफ़ कहा जाता था।</ref> की सजधज
कर्कश संगीत बजेगा, होगा फूहड़ नृत्यों का ज़ोर
सुन्दरी के सिर से खींचेंगे, चुन्नी कुछ पापी घोर
यही है जीवन, तो इस जीवन को मेरा धिक्कार
वन बड़ा-सा लगता है मुझे, यह देश, यह संसार
प्यार किया मैंने तुझे, पर विजय लगे यह लूली
चुभता है जाड़ा इस वर्ष, यह लगे है जैसे सूली
दूर वहाँ चौराहे पर, जहाँ खड़ी है गाड़ी फ़ौजी
देखा मैंने वह आदमी, जो लगता है मनमौजी
उन्मत्त भेड़ियों के मुँह देखो, लगा है लाल ख़ून
चीख़ रहे हैं वे ज़ोर से -- आज़ादी, समता, कानून
पर शान्त है तू कसान्दा, घर में लेटी बीमार
और मैं बेहद बेचैन, प्रिया, क्यों बदल रहा संसार
आकाशगंगा में आया होगा, सूरज न जाने कब
सैकड़ों वर्ष पहले भी उससे ज्योति पाते थे सब
रचनाकाल : 31 दिसम्बर 1917