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"हिसाब लेकर ही रहूँगा / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हें!
 
तुम्हें!
 
मेरे शोषण का हिसाब।
 
मेरे शोषण का हिसाब।
 
मैं ही तुम्हें छोड़ देता हूँ!
 
 
तुम्हें!
 
अपनी ऊँची
 
पहचान प्यरी है
 
उसे छोड़
 
तुम सुधरोगे
 
नहीं
 
तुम्हें सुधारना भी
 
कौन चाहता है
 
 
साँप के बच्चे को
 
दूध पिलाने से
 
कहीं उसका जहर कम होता है
 
यह तुम ही कहा करते थे ना
 
 
हाँ मेरा जहर
 
बढ़ता ही जा रहा है
 
इससे पहले
 
कि मैं तुम्हें काट खाऊँ
 
और
 
तुम्हें पीने
 
पानी भी ना मिले
 
मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ
 
आज
 
तुम्हारे लिए बेहतर है यही
 
भाग जाओ
 
 
</poem>
 
</poem>

21:00, 13 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

तूने
अपनी इच्छानुसार
सब पाया
क्योंकि तू शातिर था
जानता था छल विद्या
और हमें छलता रहा
करता रहा हमारा शोषण।

तुम्हारी कुटिलता
और छल के आगे
मेरी इच्छाएँ ही
पत्थर हो गईं
लेकिन मेरी संघर्ष यात्रा
अब भी जारी है
एक दिन
देना ही होगा
तुम्हें!
मेरे शोषण का हिसाब।