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"वसन्त की रात-1 / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
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वो चांद पकड़ना चाहे | वो चांद पकड़ना चाहे | ||
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फैली थी वितान में ऊपर | फैली थी वितान में ऊपर | ||
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उसकी दो पतली बाहें | उसकी दो पतली बाहें | ||
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चमक रहा था उसका चेहरा | चमक रहा था उसका चेहरा | ||
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थी वसन्त की रात | थी वसन्त की रात | ||
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चन्द्रकिरणों का प्रपात | चन्द्रकिरणों का प्रपात | ||
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20:42, 22 सितम्बर 2009 का अवतरण
खिड़की के पास खड़ी होकर
वो चांद पकड़ना चाहे
फैली थी वितान में ऊपर
उसकी दो पतली बाहें
चमक रहा था उसका चेहरा
थी वसन्त की रात
चेहरे पर बरस रहा था उसके
चन्द्रकिरणों का प्रपात