भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घर सास के आगे / वचनेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: लेखक: वचनेश Category:कविताएँ Category:छन्द Category:वचनेश ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ घर सा...)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:45, 17 फ़रवरी 2008 का अवतरण

लेखक: वचनेश

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।

लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।

गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।

पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।

-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश