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"पावस - 14 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

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::चितवन हूँ को न मिलत अवकास है॥
 
::चितवन हूँ को न मिलत अवकास है॥
 
प्रेमघन घन की घटा है घोर घहरात,
 
प्रेमघन घन की घटा है घोर घहरात,
::घरता बूँदैं उपजाय उर त्रास है।
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::घहरात बूँदैं उपजाय उर त्रास है।
 
पी कहाँ पपीहा साँची कहन भटू है अब,
 
पी कहाँ पपीहा साँची कहन भटू है अब,
 
::परदेसी पिय की न आवन की आस है॥
 
::परदेसी पिय की न आवन की आस है॥
 
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12:58, 22 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

बिरह बढ़ावन या सावन की रजनी मैं,
जीगन के गन को अकास में प्रकास है।
चंचला चपल चमकत चहुँ ओर चख,
चितवन हूँ को न मिलत अवकास है॥
प्रेमघन घन की घटा है घोर घहरात,
घहरात बूँदैं उपजाय उर त्रास है।
पी कहाँ पपीहा साँची कहन भटू है अब,
परदेसी पिय की न आवन की आस है॥