भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सेदोका कविताएँ / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योत्स्ना शर्मा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
+
1
 
उड़ो परिंदे!
 
उड़ो परिंदे!
 
पा लो ऊँचे शिखर
 
पा लो ऊँचे शिखर
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
इतना याद रहे
 
इतना याद रहे
 
बस मर्याद रहे!
 
बस मर्याद रहे!
 
+
2
+
 
जो तुम दोगे
 
जो तुम दोगे
 
वही मैं लौटाऊँगी
 
वही मैं लौटाऊँगी
पंक्ति 21: पंक्ति 20:
 
बिन रस, गागर
 
बिन रस, गागर
 
कैसे छलकाऊँगी?
 
कैसे छलकाऊँगी?
 
+
3
+
 
सज़ा दी मुझे
 
सज़ा दी मुझे
 
मेरा क्या था गुनाह  
 
मेरा क्या था गुनाह  
पंक्ति 29: पंक्ति 27:
 
गीत आशा के ही गा
 
गीत आशा के ही गा
 
तू भरना न आह!
 
तू भरना न आह!
 
+
4
+
 
आई जो भोर
 
आई जो भोर
 
बुझा दिए नभ ने
 
बुझा दिए नभ ने
पंक्ति 37: पंक्ति 34:
 
लुटाया धरा पर
 
लुटाया धरा पर
 
किरणों से छूकर।
 
किरणों से छूकर।
 
+
5
+
 
मन -देहरी
 
मन -देहरी
 
आहट सी होती है
 
आहट सी होती है
पंक्ति 45: पंक्ति 41:
 
संग लिये कविता
 
संग लिये कविता
 
मैंनें द्वार खोले हैं।  
 
मैंनें द्वार खोले हैं।  
 
+
6
+
 
अकेली चली
 
अकेली चली
 
हवा मन उदास
 
हवा मन उदास
पंक्ति 53: पंक्ति 48:
 
चन्दन औ' सुमन
 
चन्दन औ' सुमन
 
सुगंध सखी हुई।  
 
सुगंध सखी हुई।  
 
+
7
+
 
मन से छुआ
 
मन से छुआ
 
अहसास से जाना
 
अहसास से जाना
पंक्ति 61: पंक्ति 55:
 
इसी आस जीकर
 
इसी आस जीकर
 
मुझको मिट जाना।  
 
मुझको मिट जाना।  
 
+
8
+
 
बूँद-बूँद को
 
बूँद-बूँद को
 
समेट कर देखा
 
समेट कर देखा
पंक्ति 69: पंक्ति 62:
 
खिला रही कलियाँ
 
खिला रही कलियाँ
 
चमन खिल गया।  
 
चमन खिल गया।  
 
+
9
+
 
जीवन-रथ
 
जीवन-रथ
 
विश्वास प्यार संग
 
विश्वास प्यार संग
पंक्ति 77: पंक्ति 69:
 
है सुगम, दुखों की
 
है सुगम, दुखों की
 
बात ही क्या कहिए।  
 
बात ही क्या कहिए।  
 
+
10
१०
+
 
मेरे मोहना  
 
मेरे मोहना  
 
उस पार ले चल  
 
उस पार ले चल  
पंक्ति 85: पंक्ति 76:
 
मिटे अज्ञान सारा
 
मिटे अज्ञान सारा
 
ऐसे मुझे मोह ना।  
 
ऐसे मुझे मोह ना।  
 
+
11
११
+
 
गीत बनेंगे
 
गीत बनेंगे
 
बस दो मीठे बोल,
 
बस दो मीठे बोल,

13:32, 22 मार्च 2016 के समय का अवतरण

1
उड़ो परिंदे!
पा लो ऊँचे शिखर
छू लो चाँद-सितारे,
अर्ज़ हमारी-
इतना याद रहे
बस मर्याद रहे!
2
जो तुम दोगे
वही मैं लौटाऊँगी
रो दूँगी या गाऊँगी,
तुम्हीं कहो न
बिन रस, गागर
कैसे छलकाऊँगी?
3
सज़ा दी मुझे
मेरा क्या था गुनाह
फिर मुझसे कहा
अरी कविता
गीत आशा के ही गा
तू भरना न आह!
4
आई जो भोर
बुझा दिए नभ ने
तारों के सारे दिए
संचित स्नेह
लुटाया धरा पर
किरणों से छूकर।
5
मन -देहरी
आहट सी होती है
देखूँ, कौन बोलें हैं?
आए हैं भाव
संग लिये कविता
मैंनें द्वार खोले हैं।
6
अकेली चली
हवा मन उदास
कितनी दुखी हुई
साथी जो बने
चन्दन औ' सुमन
सुगंध सखी हुई।
7
मन से छुआ
अहसास से जाना
यूँ मैंने पहचाना
मिलोगे कभी
इसी आस जीकर
मुझको मिट जाना।
8
बूँद-बूँद को
समेट कर देखा
सागर मिल गया
मैं सींच कर
खिला रही कलियाँ
चमन खिल गया।
9
जीवन-रथ
विश्वास प्यार संग
चलते दो पहिये
समय -पथ
है सुगम, दुखों की
बात ही क्या कहिए।
10
मेरे मोहना
उस पार ले चल
चलूँगी सँभलके
दे ज्ञान दृष्टि
मिटे अज्ञान सारा
ऐसे मुझे मोह ना।
11
गीत बनेंगे
बस दो मीठे बोल,
सच्चे मीत बनेंगे
पथ में तेरे
उजियारे फैलाते
नन्हें दीप बनेंगे।