भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पत्थर की बैंच / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले |संग्रह= }} पत्थर की बैंच<br> जिस पर ...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
पत्थर की बैंच
 +
जिस पर रोता हुआ बच्चा
 +
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है
  
पत्थर की बैंच<br>
+
जिस पर एक थका युवक
जिस पर रोता हुआ बच्चा<br>
+
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है<br><br>
+
  
जिस पर एक थका युवक<br>
+
जिस पर हाथों से आँखे ढाँप
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है<br><br>
+
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है
  
जिस पर हाथों से आँखे ढाँप<br>
+
जिस पर वे दोनों
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है<br><br>
+
जिन्दगी के सपने बुन रहे हैं
  
जिस पर वे दोनों<br>
+
पत्थर की बैंच
जिन्दगी के सपने बुन रहे हैं<br><br>
+
जिस पर अंकित है आँसू, थकान
 +
विश्राम और प्रेम की स्मृतियाँ
  
पत्थर की बैंच <br>
+
इस पत्थर की बैंच के लिए भी
जिस पर अंकित है आँसू, थकान<br>
+
शुरु हो सकता है किसी दिन
विश्राम और प्रेम की स्मृतियाँ<br><br>
+
हत्याओं का सिलसिला
 
+
इसे उखाड़ कर ले जाया
इस पत्थर की बैंच के लिए भी<br>
+
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
शुरु हो सकता है किसी दिन<br>
+
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
हत्याओं का सिलसिला<br>
+
इसे उखाड़ कर ले जाया<br>
+
अथवा तोड़ा भी जा सकता है<br>
+
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा<br>
+
 
इस पत्थर की बैंच पर!
 
इस पत्थर की बैंच पर!
 +
</poem>

17:50, 15 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

पत्थर की बैंच
जिस पर रोता हुआ बच्चा
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है

जिस पर एक थका युवक
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है

जिस पर हाथों से आँखे ढाँप
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है

जिस पर वे दोनों
जिन्दगी के सपने बुन रहे हैं

पत्थर की बैंच
जिस पर अंकित है आँसू, थकान
विश्राम और प्रेम की स्मृतियाँ

इस पत्थर की बैंच के लिए भी
शुरु हो सकता है किसी दिन
हत्याओं का सिलसिला
इसे उखाड़ कर ले जाया
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
इस पत्थर की बैंच पर!