भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम्हें मेरी कसम / नीता पोरवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीता पोरवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
स्वतंत्र हो तुम
+
झम्म से
हम पर फिकरे कसने के लिए
+
बरस जाती हो  
निगाहों से ही साबुत हजम कर जाने के लिए
+
न बरसा करो
दूर से भोंडे संदेशे भेजे जाने के लिए
+
तुम्हें मेरी कसम!
बालो में झांकती सफेदी भूल
+
यह कहने के लिए कि  
+
मेरी अपनी पंखुरियाँ
“दिल तो बच्चा है जी ”
+
मुझसे अलग हो
और मन मर्जी ना चलने पर
+
कर जाती हैं
यहाँ तक कि तेज़ाब से हमारी चमड़ी झुलसाने के लिए
+
अकेला रहने को
 +
विवश मुझे
 +
माना कि हो तप्त
 +
देखता हूँ तुम्हारी राह एकटक
 +
गिना करता हूँ एक एक पल
 +
तुम्हारी आमद का
  
अच्छा है मुगालता रखना 
+
पर सच कहता हूँ
खूबसूरत दुनिया के शहंशाह होने का 
+
नहीं उत्कंठा
पर क्या ख्वाबो में ही नहीं?
+
तुम्हारे असीमित
 +
वेगमय प्रवाह की
  
यदि नहीं
+
पर्याप्त हैं कुछ बूँदें
तो आक्रोश नहीं
+
हाँ कुछ बूँदें
नफरत नहीं
+
मुझमे मेरे होने के
तुमपर तरस के साथ
+
अहसास के लिए
अबसे यही दुआ करुँगी
+
क्यों कि तुम्हारे बिन
कि और और तीव्र हो
+
मै "मै" कहाँ
तुम्हारी स्मरन ,दृश्य और श्रवण शक्ति
+
कि गूंजती रहे हर पल तुम्हारे कानो में
+
सो ऐ बाबरी
सिर्फ टंकार उन हृदय विदारक चीखो की
+
नेह भरी बदरिया!
बस जाए एकही तस्वीर तुम्हारी आँखों में
+
बरसा तो करो
उन चीथड़े रह गयी जिन्दा लाशो की
+
पर तनिक आहिस्ते से  
 
+
तुम्हे मेरी कसम
हो सके तो देखना दर्पण
+
आज फिर से एक बार
+
क्या ये वही कुलदीपक
+
अपनी जन्मदात्री का गौरव
+
घोंट साँसे गर्भ में ही हमारी
+
किये गए व्रत और मनौतियाँ जिसके लिए
+
 
+
अचरज है कि
+
नहीं भक्षण करते चील और कव्वे भी
+
कभी जीवित प्राणियों का 
+
फिर तुम...?
+
और हमेशा की तरह
+
आज भी पूर्ण स्वतंत्र हो तुम
+
शेष रह गए इन रिक्त स्थानों को
+
अपनी मर्जी से भरने के लिए
+
 
</poem>
 
</poem>

03:00, 22 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

झम्म से
बरस जाती हो
न बरसा करो
तुम्हें मेरी कसम!
 
मेरी अपनी पंखुरियाँ
मुझसे अलग हो
कर जाती हैं
अकेला रहने को
विवश मुझे
माना कि हो तप्त
देखता हूँ तुम्हारी राह एकटक
गिना करता हूँ एक एक पल
तुम्हारी आमद का

पर सच कहता हूँ
नहीं उत्कंठा
तुम्हारे असीमित
वेगमय प्रवाह की

पर्याप्त हैं कुछ बूँदें
हाँ कुछ बूँदें
मुझमे मेरे होने के
अहसास के लिए
क्यों कि तुम्हारे बिन
मै "मै" कहाँ
 
सो ऐ बाबरी
नेह भरी बदरिया!
बरसा तो करो
पर तनिक आहिस्ते से
तुम्हे मेरी कसम