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"उखेलिएको फूल / रमेश क्षितिज" के अवतरणों में अंतर
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20:27, 23 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
तिर्खाएको काकाकुलसरी भएँ
कुनै नमीठो भूलसरी भएँ
अनायासै उठी तिमी हिँडेपछि
म उखेलिएको फूलसरी भएँ
रहरहरू टाढिएर भागे
यी घर, आँगन बिराना लागे
सुकिसकेको मूलसरी भएँ
म भत्किएको पुलसरी भएँ
उदासी आई यहीँ बास माग्यो
मनमा ननिभ्ने डँढेलो लाग्यो
पासोमा परेवाको हुलसरी भएँ
म भीरको वनफूलसरी भएँ