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"उड़ान हूं मैं / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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जीवन बढता है हमेशा
 
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हो सके तुम भी उसका हिस्सा बनो
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तनो मत बातण्बेबात
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बल्कि खोलो खुद को
 
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अंधकार के गर्भगृह से
 
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जैसे खुलती हैं सुबहें
 
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एक चुप के साथ्‍
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जिसे गुंजान में बदलती
 
जिसे गुंजान में बदलती
भागती है चिडिया
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भागती है चिडि़या
 
अनंत की ओर
 
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और लौटकर टिक जाती है
 
और लौटकर टिक जाती है

15:46, 20 अगस्त 2019 के समय का अवतरण

चीजों को सरलीकृत मत करो
अर्थ मत निकालो
हर बात के मानी नहीं होते

चीजें होती हैं
अपनी संपूर्णता में बोलती हुयी
हर बार
उनका कोई अर्थ नहीं होता

अपनी अनंत रश्मि बिंदुओं से बोलती
जैसे होती हैं सुबहें
जैसे फैलती है तुम्हारी निगाह
छोर-अछोर को समेटती हुई
जीवन बढता है हमेशा
तमाम तय अर्थों को व्यर्थ करता हुआ
एक नये आकाश की ओर

हो सके, तो तुम भी उसका हिस्सा बनो

तनो मत बात-बेबात
बल्कि खोलो खुद को
अंधकार के गर्भगृह से
जैसे खुलती हैं सुबहें
एक चुप के साथ
जिसे गुंजान में बदलती
भागती है चिडि़या
अनंत की ओर
और लौटकर टिक जाती है
किसी डाल पर
फिर फिर
उड जाने के लिये

नहीं
तुम्हारी डाल नहीं हूं मैं

उडान हूं मैं
फिर
फिर।

राइनेर मारिया रिल्के के लिये