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"अब तुम रूठो / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
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दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते-जलते,
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मंजिल ही बन गया मुसाफिर चलते-चलते,
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गाते गाते गेय हो गया गायक ही खुद
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सत्य स्वप्न ही हुआ स्वयं को छलते छलते,
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डूबे जहां कहीं भी तरी वहीं अब तट है,
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अब चाहे हर लहर बने मंझधार मुझे परवाह नहीं है।
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अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
  
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।<br>
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अब पंछी को नहीं बसेरे की है आशा,
दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते-जलते,<br>
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और बागबां को न बहारों की अभिलाषा,
मंजिल ही बन गया मुसाफिर चलते-चलते,<br>
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अब हर दूरी पास, दूर है हर समीपता,
गाते गाते गेय हो गया गायक ही खुद<br>
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एक मुझे लगती अब सुख दुःख की परिभाषा,
सत्य स्वप्न ही हुआ स्वयं को छलते छलते,<br>
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अब न ओठ पर हंसी, न आंखों में हैं आंसू,
डूबे जहां कहीं भी तरी वहीं अब तट है,<br>
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अब तुम फेंको मुझ पर रोज अंगार, मुझे परवाह नहीं है।
अब चाहे हर लहर बने मंझधार मुझे परवाह नहीं है।<br>
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अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।<br><br>
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अब पंछी को नहीं बसेरे की है आशा,<br>
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अब मेरी आवाज मुझे टेरा करती है,
और बागबां को न बहारों की अभिलाषा,<br>
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अब मेरी दुनियां मेरे पीछे फिरती है,
अब हर दूरी पास, दूर है हर समीपता,<br>
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देखा करती है, मेरी तस्वीर मुझे अब,
एक मुझे लगती अब सुख दुःख की परिभाषा,<br>
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मेरी ही चिर प्यास अमृत मुझ पर झरती है,
अब न ओठ पर हंसी, न आंखों में हैं आंसू,<br>
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अब मैं खुद को पूज, पूज तुमको लेता हूं,
अब तुम फेंको मुझ पर रोज अंगार, मुझे परवाह नहीं है।<br>
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बन्द रखो अब तुम मंदिर के द्वार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।<br><br>
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अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
  
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अब हर एक नजर पहचानी सी लगती है,
अब मेरी दुनियां मेरे पीछे फिरती है,<br>
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अब हर एक डगर कुछ जानी सी लगती है,
देखा करती है, मेरी तस्वीर मुझे अब,<br>
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बात किया करता है, अब सूनापन मुझसे,
मेरी ही चिर प्यास अमृत मुझ पर झरती है,<br>
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टूट रही हर सांस कहानी सी लगती है,
अब मैं खुद को पूज, पूज तुमको लेता हूं,<br>
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अब मेरी परछाई तक मुझसे न अलग है,
बन्द रखो अब तुम मंदिर के द्वार, मुझे परवाह नहीं है।<br>
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अब तुम चाहे करो घृणा या प्यार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।<br><br>
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अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
 
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अब हर एक नजर पहचानी सी लगती है,<br>
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अब हर एक डगर कुछ जानी सी लगती है,<br>
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बात किया करता है, अब सूनापन मुझसे,<br>
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टूट रही हर सांस कहानी सी लगती है,<br>
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अब मेरी परछाई तक मुझसे न अलग है,<br>
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अब तुम चाहे करो घृणा या प्यार, मुझे परवाह नहीं है।<br>
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अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।<br><br>
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21:09, 19 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते-जलते,
मंजिल ही बन गया मुसाफिर चलते-चलते,
गाते गाते गेय हो गया गायक ही खुद
सत्य स्वप्न ही हुआ स्वयं को छलते छलते,
डूबे जहां कहीं भी तरी वहीं अब तट है,
अब चाहे हर लहर बने मंझधार मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।

अब पंछी को नहीं बसेरे की है आशा,
और बागबां को न बहारों की अभिलाषा,
अब हर दूरी पास, दूर है हर समीपता,
एक मुझे लगती अब सुख दुःख की परिभाषा,
अब न ओठ पर हंसी, न आंखों में हैं आंसू,
अब तुम फेंको मुझ पर रोज अंगार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।

अब मेरी आवाज मुझे टेरा करती है,
अब मेरी दुनियां मेरे पीछे फिरती है,
देखा करती है, मेरी तस्वीर मुझे अब,
मेरी ही चिर प्यास अमृत मुझ पर झरती है,
अब मैं खुद को पूज, पूज तुमको लेता हूं,
बन्द रखो अब तुम मंदिर के द्वार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।

अब हर एक नजर पहचानी सी लगती है,
अब हर एक डगर कुछ जानी सी लगती है,
बात किया करता है, अब सूनापन मुझसे,
टूट रही हर सांस कहानी सी लगती है,
अब मेरी परछाई तक मुझसे न अलग है,
अब तुम चाहे करो घृणा या प्यार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।