भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वर्षा के वैभव / तेजनारायण कुशवाहा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवप्रीतानन्द ओझा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=भवप्रीतानन्द ओझा
+
|रचनाकार=तेजनारायण कुशवाहा
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव
 
|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव

13:46, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

के उतरलै घोघो लेने ई चढ़ते आखर में
ताल-तलैया बैहारॅ से पत्थर-पहार में।
घन घेरे आकाश छने
दिन-दुपहरिया-सांझ बनै
पछिमे पनसोखा सरकै सरंगॅ के आरो पार में।

तड़-तड़-तड़ बिजली तड़कै
धड़-धड़ बानर जी धड़कै

गाछ बिरिछ के पत्ता हर हर गाबै डार मलार में।

सन-सन पुरवैया लहरै
झन-झन झिंगुर शोर करै

नांचै मोर पपीहा पी-पी पिहकै नदिया पार में।

पानी-पानी सॅ गोठॅ
भेलै एक खेत सबठो
छप-छप, कल-कल, खल-ाल निकलै बस एके सुरधार में

रस-भिंगली बसती-बसती
टीकर-टांड़-उसर-परती

धरती हुलसै धान-उदड़ के अंखुआ ले उपहार में।

गोछी गाड़ै हे सिरौतिन आरी-आरी
धान रौपै हे कठौतिन धारी-धारी
आगू आगू गोछी गाड़ै रानी सिरौतिनियां
ताही पीछू गांथै आरो आनी कठौतिनियाँ
बीचे रोपनियाँ हे बारी-बारी

उमड़ि-उमड़ि मेघा जल बरसाबै
सगठे रोपनियाँ के गीत लहराबै
रझै बटोहिया सुनि के गारी
खेतवो किसनमो के आस गदर लै
बने-बने, घास-पात चास हरियैलै
सोंधियैलै मांटी बारी-कुवारी
ठनकै ठनकवा वो चमकै बिजुरिया
बरा सलोना संगै सौनी कजरिया
खेलै सामरो मने पारी-पारी

-सवर्णा महाकाव्य से