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19:34, 5 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
उसका [कवि का] कान उससे बात करता है
— पॉल वालेरी
मीलों-मील बँधी हुई धूप में
पूसे अनाज के
कान सुनता है
एकटक
कनक और टेसू के रंग
सेमल के फूल की हवा में
और मँजते हुए सुबह के बासन कहीं
वह कहीं इस दृश्य की भँगुरता में अलसाई
हँस रही है काँच की हँसी