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12:56, 21 जून 2008 के समय का अवतरण
खिला रहता था जिनके प्यार का मधुमास आँखों में
वही अब लिख गए हैं विरह का इतिहास आँखों में
करेगी शांत क्या उसको अब उनके प्यार की बरखा
न जाने कौन से जन्मों की है ये प्यास आँखों में
मेरे दिल की अयोध्या में न जाने कब हो दीवाली
झलकता है अभी तो राम का बनवास आँखों में
पवन जब मन के दरवाज़े पे हल्की—सी भी दस्तक दे
तो लौट आता है फिर खोया हुआ विश्वास आँखों में
उभरती है पुरानी चोट कोई जब कसक बनकर
तो जाग उठता है फिर से दर्द का एहसास आँखों में
ये किसके पाँओं की आहट ने चौंकाया मुझे ‘साग़र’!
कि उग आई है तृष्णाओं की कोमल घास आँखों में