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13:02, 20 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
शहर
सुबह चहचहाता है, उम्मीद सा
शहर, दिन के शोर में
कोशिश सा चीखता है
शाम से ही, साध लेता है, चुप्पी, ये शहर
ख़ामोश करता है, नुख्त की सब बोलियाँ
इस शहर के शब औ’ सहर का सिलसिला
मुझ सा ही है सादिक़, और तुम सा ही है !!