भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँसों के मुसाफिर / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" }} इसको भी अपनाता चल,<br> उसको भी अपनाता चल,...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
 
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatGeet}}
 +
<poem>
 +
इसको भी अपनाता चल,
 +
उसको भी अपनाता चल,
 +
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।
  
इसको भी अपनाता चल,<br>
+
बिना प्यार के चले न कोई, आँधी हो या पानी हो,
उसको भी अपनाता चल,<br>
+
नई उमर की चुनरी हो या कमरी फटी पुरानी हो,
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।<br><br>
+
तपे प्रेम के लिए, धरिवी, जले प्रेम के लिए दिया,
 +
कौन हृदय है नहीं प्यार की जिसने की दरबानी हो,
  
बिना प्यार के चले न कोई, आँधी हो या पानी हो,<br>
+
तट-तट रास रचाता चल,
नई उमर की चुनरी हो या कमरी फटी पुरानी हो,<br>
+
पनघट-पनघट गाता चल,
तपे प्रेम के लिए, धरिवी, जले प्रेम के लिए दिया,<br>
+
प्यासी है हर गागर दृग का गंगाजल छलकाता चल।
कौन हृदय है नहीं प्यार की जिसने की दरबानी हो,<br><br>
+
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।
  
तट-तट रास रचाता चल,<br>
+
कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है,
पनघट-पनघट गाता चल,<br>
+
इसका खेमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है,
प्यासी है हर गागर दृग का गंगाजल छलकाता चल।<br>
+
श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।<br><br>
+
सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?
  
कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है,<br>
+
गलियाँ गाँव गुँजाता चल,
इसका खेमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है,<br>
+
पथ-पथ फूल बिछाता चल,
श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,<br>
+
हर दरवाजा रामदुआरा सबको शीश झुकाता चल।
सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?<br><br>
+
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।
  
गलियाँ गाँव गुँजाता चल,<br>
+
हृदय हृदय के बीच खाइयाँ, लहू बिछा मैदानों में,
पथ-पथ फूल बिछाता चल,<br>
+
धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में,
हर दरवाजा रामदुआरा सबको शीश झुकाता चल।<br>
+
जंजीरें कट गई, मगर आजाद नहीं इन्सान अभी
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।<br><br>
+
दुनियाँ भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में,
  
हृदय हृदय के बीच खाइयाँ, लहू बिछा मैदानों में,<br>
+
सोई किरन जगाता चल,
धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में,<br>
+
रूठी सुबह मनाता चल,
जंजीरें कट गई, मगर आजाद नहीं इन्सान अभी<br>
+
प्यार नकाबों में न बन्द हो हर घूँघट खिसकाता चल।
दुनियाँ भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में,<br><br>
+
 
+
सोई किरन जगाता चल,<br>
+
रूठी सुबह मनाता चल,<br>
+
प्यार नकाबों में न बन्द हो हर घूँघट खिसकाता चल।<br>
+
 
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।।
 
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।।
 +
</poem>

00:36, 11 जून 2014 के समय का अवतरण

इसको भी अपनाता चल,
उसको भी अपनाता चल,
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।

बिना प्यार के चले न कोई, आँधी हो या पानी हो,
नई उमर की चुनरी हो या कमरी फटी पुरानी हो,
तपे प्रेम के लिए, धरिवी, जले प्रेम के लिए दिया,
कौन हृदय है नहीं प्यार की जिसने की दरबानी हो,

तट-तट रास रचाता चल,
पनघट-पनघट गाता चल,
प्यासी है हर गागर दृग का गंगाजल छलकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।

कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है,
इसका खेमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है,
श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,
सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?

गलियाँ गाँव गुँजाता चल,
पथ-पथ फूल बिछाता चल,
हर दरवाजा रामदुआरा सबको शीश झुकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।

हृदय हृदय के बीच खाइयाँ, लहू बिछा मैदानों में,
धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में,
जंजीरें कट गई, मगर आजाद नहीं इन्सान अभी
दुनियाँ भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में,

सोई किरन जगाता चल,
रूठी सुबह मनाता चल,
प्यार नकाबों में न बन्द हो हर घूँघट खिसकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।।