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18:10, 25 फ़रवरी 2010 का अवतरण
काँपती किरनें
पड़ीं जब ताल के जल में।
लहरों का
तन कोरा
पावन हुआ पल में।
बूढ़ा वट
यह देखकर
अनमाना-सा हो गया
जब साँझ डूबी
चांद था
उतरा किनारे।
टाल भरकर
थाल में
लाया सितारे।
चांद की
पलकें झुकीं कि
एक सपना खो गया।
डालियों पर
रात उतरी
खामोश अम्बर।
शीतल हवा ने
जब छाप छोड़ी
भाल पर।
पल में
संताप तन का
और मन का सो गया।