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"दो मुठ्ठी धूप/ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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+ | बूझो तो मैं हूँ कहाँ ? | ||
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+ | तुषार बिंदु | ||
+ | टप टप टपके | ||
+ | फूल पांखुरी | ||
+ | भोर की पलकों पे | ||
+ | ज्यूँ हों मोती अटके । | ||
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+ | परखना क्या | ||
+ | इन्हें तू प्यार कर | ||
+ | रिश्ते काँच हैं | ||
+ | नाज़ुक से होते हैं | ||
+ | टूटें ,दर्द ढोते हैं । | ||
+ | 60 | ||
+ | हाँ ,पँखुरी से | ||
+ | सहेज लिये सारे | ||
+ | जो रिश्ते मिले | ||
+ | फिर जीवन मेरा | ||
+ | क्यों न फूल- सा खिले ! | ||
+ | 61 | ||
+ | तुम से रिश्ते | ||
+ | कुछ ऐसे निभाए | ||
+ | बाँधा बंधन | ||
+ | चाहा फिर गिरह | ||
+ | यूँ पड़ने न पाए । | ||
+ | 62 | ||
+ | रिश्ता हमारा | ||
+ | मैंने जोड़ा ही नहीं | ||
+ | जी भर जिया, | ||
+ | प्रीत के साथ दर्द | ||
+ | तुमने दिया ,लिया । | ||
+ | 63 | ||
+ | जैसे भी चाहो | ||
+ | ओढ़ना या बिछाना | ||
+ | इतना सुनो | ||
+ | ये रिश्तों की चादर | ||
+ | दाग़ मत लगाना । | ||
+ | 64 | ||
+ | मौला, ये रिश्ते ! | ||
+ | कितने अजीब हैं | ||
+ | दूर लगते | ||
+ | अक्सर हमारे जो | ||
+ | बेहद करीब हैं । | ||
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16:56, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
57
दो मुठ्ठी धूप
छिड़की यहाँ-वहाँ
मेघ -रजाई
छिप के पूछे रवि-
बूझो तो मैं हूँ कहाँ ?
58
तुषार बिंदु
टप टप टपके
फूल पांखुरी
भोर की पलकों पे
ज्यूँ हों मोती अटके ।
59
परखना क्या
इन्हें तू प्यार कर
रिश्ते काँच हैं
नाज़ुक से होते हैं
टूटें ,दर्द ढोते हैं ।
60
हाँ ,पँखुरी से
सहेज लिये सारे
जो रिश्ते मिले
फिर जीवन मेरा
क्यों न फूल- सा खिले !
61
तुम से रिश्ते
कुछ ऐसे निभाए
बाँधा बंधन
चाहा फिर गिरह
यूँ पड़ने न पाए ।
62
रिश्ता हमारा
मैंने जोड़ा ही नहीं
जी भर जिया,
प्रीत के साथ दर्द
तुमने दिया ,लिया ।
63
जैसे भी चाहो
ओढ़ना या बिछाना
इतना सुनो
ये रिश्तों की चादर
दाग़ मत लगाना ।
64
मौला, ये रिश्ते !
कितने अजीब हैं
दूर लगते
अक्सर हमारे जो
बेहद करीब हैं ।