भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आहत मन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<Poem> | <Poem> | ||
+ | 1 | ||
+ | सूली पर लटकी | ||
+ | पल पल मरती आशा | ||
+ | तुमने कहा-रिश्ते। | ||
+ | 2 | ||
+ | तेरे-मेरे बीच | ||
+ | मीलों का फ़ासला | ||
+ | फिर भी साथ हैं हम। | ||
+ | 3 | ||
+ | साथ रहना हुआ | ||
+ | रात दिन बरसों | ||
+ | पहचान कभी | ||
+ | हो न सकी। | ||
+ | 4 | ||
+ | हवा चली | ||
+ | पतझर में टूटा पत्ता | ||
+ | कहाँ गिरा क्या पता | ||
+ | हुआ लापता। | ||
+ | 5 | ||
+ | तुमको चाहा | ||
+ | उम्र के समन्दरों के पार | ||
+ | कब मिले? | ||
+ | 6 | ||
+ | मेरा बेचैन मन | ||
+ | बेवज़ह गीली आँखें | ||
+ | लगता आज तुम | ||
+ | बहुत रोए होगे। | ||
+ | 7 | ||
+ | नुकीले नंगे पहाड़ | ||
+ | खड़ी चढ़ाई | ||
+ | दिन रात चले | ||
+ | घायल तन | ||
+ | आहत मन। | ||
</poem> | </poem> |
17:48, 11 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
1
सूली पर लटकी
पल पल मरती आशा
तुमने कहा-रिश्ते।
2
तेरे-मेरे बीच
मीलों का फ़ासला
फिर भी साथ हैं हम।
3
साथ रहना हुआ
रात दिन बरसों
पहचान कभी
हो न सकी।
4
हवा चली
पतझर में टूटा पत्ता
कहाँ गिरा क्या पता
हुआ लापता।
5
तुमको चाहा
उम्र के समन्दरों के पार
कब मिले?
6
मेरा बेचैन मन
बेवज़ह गीली आँखें
लगता आज तुम
बहुत रोए होगे।
7
नुकीले नंगे पहाड़
खड़ी चढ़ाई
दिन रात चले
घायल तन
आहत मन।