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"बकरियाँ / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर

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अगर अनंत में झाडियाँ होतीं तो बकरियाँ  
 
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अनंत में भी हो आतीं  
 
अनंत में भी हो आतीं  
 
 
भर पेट पत्तियाँ तूंग कर वहाँ से  
 
भर पेट पत्तियाँ तूंग कर वहाँ से  
 
 
फिर धरती के किसी परिचित बरामदे में  
 
फिर धरती के किसी परिचित बरामदे में  
 
 
लौट आतीं  
 
लौट आतीं  
 
  
 
जब मैं पहली बार पहाड़ों में गया  
 
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पहाड़ की तीखी चढाई पर भी बकरियों से मुलाक़ात हुई  
 
पहाड़ की तीखी चढाई पर भी बकरियों से मुलाक़ात हुई  
 
 
वे काफ़ी नीचे के गाँवों से चढ़ती हुई ऊपर आ जाती थीं  
 
वे काफ़ी नीचे के गाँवों से चढ़ती हुई ऊपर आ जाती थीं  
 
 
जैसे जैसे हरियाली नीचे से उजड़ती जाती  
 
जैसे जैसे हरियाली नीचे से उजड़ती जाती  
 
 
गर्मियों में  
 
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लेकिन चरवाहे कहीँ नहीं दिखे  
 
लेकिन चरवाहे कहीँ नहीं दिखे  
 
 
सो रहे होंगे  
 
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किसी पीपल की छाया में  
 
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यह सुख उन्हें ही नसीब है।
 
यह सुख उन्हें ही नसीब है।
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00:51, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण

अगर अनंत में झाडियाँ होतीं तो बकरियाँ
अनंत में भी हो आतीं
भर पेट पत्तियाँ तूंग कर वहाँ से
फिर धरती के किसी परिचित बरामदे में
लौट आतीं

जब मैं पहली बार पहाड़ों में गया
पहाड़ की तीखी चढाई पर भी बकरियों से मुलाक़ात हुई
वे काफ़ी नीचे के गाँवों से चढ़ती हुई ऊपर आ जाती थीं
जैसे जैसे हरियाली नीचे से उजड़ती जाती
गर्मियों में

लेकिन चरवाहे कहीँ नहीं दिखे
सो रहे होंगे
किसी पीपल की छाया में
यह सुख उन्हें ही नसीब है।