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"पद-रज हुई / इसाक अश्क" के अवतरणों में अंतर
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− | क्या होगा यह तो | + | क्या होगा यह तो |
− | ईश्वर ही जानें | + | ईश्वर ही जानें |
− | खिले आग के | + | खिले आग के |
− | फूल फूँकती | + | फूल फूँकती |
− | स्वर-शहनाई है। | + | स्वर-शहनाई है। |
− | गंध-पवन के | + | गंध-पवन के |
− | बेलगाम | + | बेलगाम |
− | शक्तिशाली झोंके | + | शक्तिशाली झोंके |
− | कौन भला | + | कौन भला |
− | इनको जो बढकर | + | इनको जो बढकर |
− | हाथों से रोके | + | हाथों से रोके |
− | रक्तिम | + | रक्तिम |
− | हुए कपोल | + | हुए कपोल |
दिशा कुछ-यों शरमाई है। | दिशा कुछ-यों शरमाई है। | ||
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20:15, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
पद-रज हुई
गुलाल
लगा फिर ऋतु फगुनाई है।
मादल की
थापें हों या हों-
वंशी की तानें
ऐसे में
क्या होगा यह तो
ईश्वर ही जानें
खिले आग के
फूल फूँकती
स्वर-शहनाई है।
गंध-पवन के
बेलगाम
शक्तिशाली झोंके
कौन भला
इनको जो बढकर
हाथों से रोके
रक्तिम
हुए कपोल
दिशा कुछ-यों शरमाई है।