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घुस हृदय के
 
रूप-रस के चोर आए।
 
रूप-रस के चोर आए।
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20:12, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

देखिये-तो
किस कदर फिर
आम-अमियों बौर आए।

धूप
पीली चिट्ठियाँ
घर आँगनों में,
डाल
हँसती-गुनगुनाती है-
वनों में,
पास कलियों
फूल-गंधों के
सिमट सब छोर आए।

बंदिशें
टूटीं प्रणय के-
रंग बदले,
उम्र चढती
जन्दगी के-
ढंग बदले,
ठेठ घर में
घुस हृदय के
रूप-रस के चोर आए।