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"जिंदगी / बुद्धिनाथ मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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वे जिन्हें सर पर उठाया वक्त ने<br>
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भावना की अनसुनी आवाज थे <br>
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तितलियों के पंख, नन्ही जान भी
  
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कौन करता याद अब उस दौर को
तितलियों के पंख, नन्ही जान भी <br><br>
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जब गरीबी भी कटी आराम  से
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गर्दिशों की  मार को  सहते  हुए
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लोग  रिश्ता  जोड  बैठे  राम से
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राजसुख से प्रिय जिन्हें वनवास था
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आज सब कुछ है मगर हासिल नहीं
जब गरीबी  भी कटी  आराम  से <br>
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हर थकन के बाद  मीठी नींद  अब
गर्दिशों की  मार को  सहते  हुए <br>
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हर कदम पर  बोलियों की  बेडयाँ
लोग  रिश्ता  जोड  बैठे  राम से<br><br>
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जन्दगी घुडदौड  की मानिन्द  अब
 
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आँख में  आँसू नहीं  काजल  नहीं
राजसुख से प्रिय जिन्हें वनवास था<br>
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किस तरह के थे  यहाँ इन्सान भी।<br><br>
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आज सब कुछ है मगर हासिल नहीं<br>
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हर थकन के बाद  मीठी नींद  अब<br>
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जन्दगी घुडदौड  की मानिन्द  अब<br><br>
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आँख में  आँसू नहीं  काजल  नहीं<br>
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होठ  पर दिखती  न वह मुस्कान भी।
 
होठ  पर दिखती  न वह मुस्कान भी।

09:43, 17 अप्रैल 2013 का अवतरण

जिंदगी अभिशाप भी, वरदान भी
जिंदगी दुख में पला अरमान भी
क़र्ज़ सांसों का चुकाती जा रही
जिंदगी है मौत पर अहसान भी
 
वे जिन्हें सर पर उठाया वक्त ने
भावना की अनसुनी आवाज थे
बादलों में घर बसाने के लिए
चंद तिनके ले उडे परवाज थे
दब गये इतिहास के पन्नों तले
तितलियों के पंख, नन्ही जान भी

कौन करता याद अब उस दौर को
जब गरीबी भी कटी आराम से
गर्दिशों की मार को सहते हुए
लोग रिश्ता जोड बैठे राम से
राजसुख से प्रिय जिन्हें वनवास था
किस तरह के थे यहाँ इन्सान भी।

आज सब कुछ है मगर हासिल नहीं
हर थकन के बाद मीठी नींद अब
हर कदम पर बोलियों की बेडयाँ
जन्दगी घुडदौड की मानिन्द अब
आँख में आँसू नहीं काजल नहीं
होठ पर दिखती न वह मुस्कान भी।