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"है यह पतझड़ की शाम, सखे! / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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कू-कू कर कोयल मांग रही नूतन घूँघट अविराम, सखे! | कू-कू कर कोयल मांग रही नूतन घूँघट अविराम, सखे! | ||
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नीड़ों में हैं कुछ-कुछ कंपन, | नीड़ों में हैं कुछ-कुछ कंपन, | ||
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− | मत देख, नज़र लग जाएगी; यह | + | है यह पतझड़ की शाम, सखे! |
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12:29, 3 अक्टूबर 2009 का अवतरण
है यह पतझड़ की शाम, सखे!
नीलम-से पल्लव टूट गए,
मरकत-से साथी छूट गए,
अटके फिर भी दो पीत पात जीवन-डाली को थाम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!
लुक-छिप करके गानेवाली,
मानव से शरमानेवाली,
कू-कू कर कोयल मांग रही नूतन घूँघट अविराम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!
नंगी डालों पर नीड़ सघन,
नीड़ों में हैं कुछ-कुछ कंपन,
मत देख, नज़र लग जाएगी; यह चिड़ियों के सुखधाम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!