भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पहर / अखिलेश श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अखिलेश श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
छो (Sharda suman ने पहर: / अखिलेश श्रीवास्तव पृष्ठ पहर / अखिलेश श्रीवास्तव पर स्थानांतरित किया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:00, 29 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

रात्रि के तीसरे पहर में
उसके लटों से खेलना
मेरे लिये आग तापनें जैसा है
उसके लिये है राख हो जाने जैसा।

उसका प्रेम उर्ध्वाकार होकर
यज्ञ की अग्नि बनना चाहता है
जबकि मेरा प्रेम चाहता है
क्षैतिज हो जाना।

वह माँ हो जाना चाहती है
पर कुंती होना नहीं।
मै आमादा हूँ सूर्य बन जाने को
पर पिता होना नहीं चाहता।

माँ और पिता का सम्बध
एक प्रयोग है कई बार
जिसमें पीठ सहलाते हुए दी जाती है
लड़कीयों को माँ बन जाने की सलाह
जबकि पिता होने व बन जाने के बीच
एक स्वीकृत ज़रूरी है
यह सुश्रुत का देश है
रूह व अजन्मे मांस को यूं अलग करता है
कि माँ तक को खबर नहीं होती।

शल्य चिकित्सा
कोख में अवैध खनन जैसा है
घोषणा पत्र पर पिता के हस्ताक्षर है
किसी ठेकेदार के हस्ताक्षर जैसे
अजन्मा शिशु बालू जैसा है।

दुनिया में
स्त्री के माँ बन जाने की संख्या
पुरूष के पिता बन जाने की संख्या से
कई गुना ज़्यादा है।