भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं जीवन में कुछ कर न सका / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
  
जग में अँधियाला छाया था,
+
जग में अँधियारा छाया था,
  
 
मैं ज्‍वाला लेकर आया था
 
मैं ज्‍वाला लेकर आया था
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
मन जीवन पर पछताएगा,
 
मन जीवन पर पछताएगा,
  
मरना ही होगा मुझको जब मरना था तब मर न सका!
+
मरना ही होगा मुझको पर, जब मरना था तब मर न सका!
  
 
मैं जीवन में कुछ न कर सका!
 
मैं जीवन में कुछ न कर सका!

19:05, 26 सितम्बर 2009 का अवतरण

मैं जीवन में कुछ न कर सका!


जग में अँधियारा छाया था,

मैं ज्‍वाला लेकर आया था

मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका!

मैं जीवन में कुछ न कर सका!


अपनी ही आग बुझा लेता,

तो जी को धैर्य बँधा देता,

मधु का सागर लहराता था, लघु प्‍याला भी मैं भर न सका!

मैं जीवन में कुछ न कर सका!


बीता अवसर क्‍या आएगा,

मन जीवन पर पछताएगा,

मरना ही होगा मुझको पर, जब मरना था तब मर न सका!

मैं जीवन में कुछ न कर सका!