भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मिट्टी दीन कितनी, हाय / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
शून्‍यता एकांत मन की,
 
शून्‍यता एकांत मन की,
  
शून्‍यता जैसे गगन की,थाह पाती है न इसका मृत्तिका असहाय!
+
शून्‍यता जैसे गगन की,
 +
 
 +
थाह पाती है न इसका मृत्तिका असहाय!
  
 
मिट्टी दीन कितनी, हाय!
 
मिट्टी दीन कितनी, हाय!

19:12, 26 सितम्बर 2009 का अवतरण

मिट्टी दीन कितनी, हाय!


हृदय की ज्‍वाला जलाती,

अश्रु की धारा बहाती,

और उर-उच्‍छ्वास में यह काँपती निरुपाय!

मिट्टी दीन कितनी, हाय!


शून्‍यता एकांत मन की,

शून्‍यता जैसे गगन की,

थाह पाती है न इसका मृत्तिका असहाय!

मिट्टी दीन कितनी, हाय!


वह किसे दोषी बताए,

और किसको दुख सुनाए,

जब कि मिट्टी के करे अन्‍याय!

मिट्टी दीन कितनी, हाय!