भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम्‍हारा लौह चक्र आया / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
अचरज से निज मुख फैलाया,
 
अचरज से निज मुख फैलाया,
  
दंत-चिह्न केवल मानव का जब उस पर पाया!
+
दंत-चिन्ह केवल मानव का जब उस पर पाया!
  
 
तुम्‍हारा लौह चक्र आया!
 
तुम्‍हारा लौह चक्र आया!

19:16, 26 सितम्बर 2009 का अवतरण

तुम्‍हारा लौह चक्र आया!


कुचल चला अचला के वन घन,

बसे नगर सब निपट निठुर बन,

चूर हुई चट्टान, क्षार पर्वत की दृढ़ काया!

तुम्‍हारा लौह चक्र आया!


अगणित ग्रह-नक्षत्र गगन के

टूट पिसे, मरु-सिसका-कण के

रूप उड़े, कुछ घुआँ-घुआँ-सा अंबर में छाया!

तुम्‍हारा लौह चक्र आया!


तुमने अपना चक्र उठाया,

अचरज से निज मुख फैलाया,

दंत-चिन्ह केवल मानव का जब उस पर पाया!

तुम्‍हारा लौह चक्र आया!