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चन्द्रकला बाई बूँदी के कवि और दीवान कविराज राव गुलाबसिंह की दासी की पुत्री थीं। स्वयं चन्द्रकलाजी ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है:-
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एहो ब्रजराज कत बैठे हौ निकुंज माँहि,
 
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कीन्हों तुम मान ताकी सुधि कछु पाई है।
बरस पंच-दस की बय मेरी।
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ताते वृषभानुजा सिंगार साजि नीकी भाँति,
कवि गुलाब की हूँ मैं चेरी॥
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सखियाँ सयानी संग लेय सुखदाई है॥
बालहिं ते कवि-संगति पाई।
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‘चन्द्रकला’ लाल अवलोको और मारग की,
ताते तुम जोरन मोहिं आई॥
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भारी भय-दायिनी अपार भीर छाई है।
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रावरो गुमान अति बल अति भट मानि,
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जोबन को फौज लैके मारिबे को धाई है॥
 
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14:54, 19 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

एहो ब्रजराज कत बैठे हौ निकुंज माँहि,
कीन्हों तुम मान ताकी सुधि कछु पाई है।
ताते वृषभानुजा सिंगार साजि नीकी भाँति,
सखियाँ सयानी संग लेय सुखदाई है॥
‘चन्द्रकला’ लाल अवलोको और मारग की,
भारी भय-दायिनी अपार भीर छाई है।
रावरो गुमान अति बल अति भट मानि,
जोबन को फौज लैके मारिबे को धाई है॥