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"हक़ीक़त समझते नहीं लोग फिर भी / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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हक़ीक़त समझते नहीं लोग फिर भी
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बड़ा आततायी है राजा हमारा
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सही बात कहते नहीं लोग फिर भी
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नहीं इंतिहा उसके जु़ल्मोसितम की
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हुकूमत बदलते नहीं लोग फिर भी
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पता है कि इक वोट की क्या है क़ीमत
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क्यों मतदान करते नहीं लोग फिर भी
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भले ख़़ुदकुशी करके जाँ अपनी दे दें
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समर में उतरते नहीं लोग फिर भी
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हज़ारों तरह के हैं रोड़े सफ़र में
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ख़बर है, सँभलते नहीं लोग फिर भी
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मरे भूख से कोई उनकी बला से
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ग़ज़ब हैं पिघलते नहीं लोग फिर भी
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जपेंगे अँधेरे में बिजली की माला
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दिया एक रखते नहीं लोग फिर भी
 
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20:55, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

हक़ीक़त समझते नहीं लोग फिर भी
घरों से निकलते नहीं लोग फिर भी

बड़ा आततायी है राजा हमारा
सही बात कहते नहीं लोग फिर भी

नहीं इंतिहा उसके जु़ल्मोसितम की
हुकूमत बदलते नहीं लोग फिर भी

पता है कि इक वोट की क्या है क़ीमत
क्यों मतदान करते नहीं लोग फिर भी

भले ख़़ुदकुशी करके जाँ अपनी दे दें
समर में उतरते नहीं लोग फिर भी

हज़ारों तरह के हैं रोड़े सफ़र में
ख़बर है, सँभलते नहीं लोग फिर भी
 
मरे भूख से कोई उनकी बला से
ग़ज़ब हैं पिघलते नहीं लोग फिर भी

जपेंगे अँधेरे में बिजली की माला
दिया एक रखते नहीं लोग फिर भी