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"सब कहलको हे / रामकृष्ण" के अवतरणों में अंतर

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तोर चुप्पी अनोर हो गेलो
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कुछ न कहके उ सब कहलको हे,
रात करिआ से गोर हो गेलो
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लोर में भींज सब सहलको हे॥
का हूँ, मन के भरम पाल-पोस के अप्पन
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आँख तऽ, गोर मन के दरपन हौ,
एगो लत्तर इयाद के सरेख कइली हल।
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साँस बन नेह के समरपन हौ।
साज के, सुरके न, कनहूँ से राग के असरा,
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तोर किरिआ लहस के सपना के,
तोरे आँगछ से अन्हरिओ इंजोर हो गेलो॥
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सब दिरिस आस में सँवारलो हे॥
ओठ से बात जब छलक जैतो तब कहिह,
+
साँझ से भोर तक उदास निअन
गीत हिरदा में जब धमक जैतो फूल निअन
+
अनमिझाएल एगो पिआस निअन
गन्ह के छाँह से सिरजल सिनेह के छँहरी
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सोझ मन के इ बात हिरनी के
जेठ के लूक-पहर जुड़-झकोर हो गेलो॥
+
मेह के छाँह बन उतरलो हे॥
गुदगुदी मन के भरम खोल सबके कह देतो,
+
झाँझ-गोड़ाँव के दरद, हमरा
तोर मातल मुठान से अइसन लग रहलो।
+
सब कहलको हे इ सरद हमरा।
अब, बहाना बना के मत जिआन बेर करऽ।
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गन्ह सन् पाँव पर कि पिपनी पर
तोर अँचरा में हमर मन के भोर हो गेलो॥
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अंगे-अँगे खिलखिला पसरलो हे॥
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ई अँधरिया के पार जाएला
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सात सुर फिन उतार लावेला
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एगो असरे हमर सभे जिनगी
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आप सूखे एने सरसलो हे॥</poem>

12:41, 3 मार्च 2019 के समय का अवतरण

कुछ न कहके उ सब कहलको हे,
लोर में भींज सब सहलको हे॥
आँख तऽ, गोर मन के दरपन हौ,
साँस बन नेह के समरपन हौ।
तोर किरिआ लहस के सपना के,
सब दिरिस आस में सँवारलो हे॥
साँझ से भोर तक उदास निअन
अनमिझाएल एगो पिआस निअन
सोझ मन के इ बात हिरनी के
मेह के छाँह बन उतरलो हे॥
झाँझ-गोड़ाँव के दरद, हमरा
सब कहलको हे इ सरद हमरा।
गन्ह सन् पाँव पर कि पिपनी पर
अंगे-अँगे खिलखिला पसरलो हे॥
ई अँधरिया के पार जाएला
सात सुर फिन उतार लावेला
एगो असरे हमर सभे जिनगी
आप सूखे एने सरसलो हे॥