भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पौने दो घंटे / निशांत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशांत }} आधा घंटा <br> चुरा लिया है मैंने सुबह के समय में ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=निशांत | |रचनाकार=निशांत | ||
− | }} | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | आधा घंटा | ||
+ | चुरा लिया है मैंने सुबह के समय में | ||
+ | समाचार-पत्र पढ़ने के लिए | ||
− | + | एक घंटा चुरा लिया है मैंने | |
− | चुरा लिया है मैंने | + | दोपहर की कार्यावधि के बीच से |
− | + | कहानियों को पढ़ने के लिए | |
− | + | पन्द्रह मिनट और चुरा लिए हैं मैंने | |
− | + | अपनी नींद से | |
− | + | कविताओं के लिए | |
− | + | इस तरह | |
− | + | पंखे की तरह दौड़ती हुई ज़िन्दगी में से | |
− | + | प्रतिदिन चुरा लेता हूँ मैं | |
+ | पौने दो घंटे क़िताबों के लिए | ||
− | + | इन पौने दो घंटे ही | |
− | + | रहता हूँ मैं मनुष्य | |
− | + | बाक़ी समय पंखा, रेलगाड़ी, हवाई जहाज़, कंप्यूटर | |
− | + | और ई-मेल में तब्दील रहता हूँ | |
− | + | एक गंतव्य से दूसरे | |
− | इन पौने दो घंटे ही | + | और दूसरे से फिर-फिर पहले की तरफ़ |
− | रहता हूँ मैं मनुष्य | + | दौड़ लगाते हुए |
− | बाक़ी समय पंखा, रेलगाड़ी, हवाई | + | </poem> |
− | और ई-मेल में तब्दील रहता हूँ | + | |
− | एक गंतव्य से दूसरे | + | |
− | और दूसरे से फिर-फिर पहले की तरफ़ | + | |
− | दौड़ लगाते हुए < | + |
16:08, 12 अक्टूबर 2009 का अवतरण
आधा घंटा
चुरा लिया है मैंने सुबह के समय में
समाचार-पत्र पढ़ने के लिए
एक घंटा चुरा लिया है मैंने
दोपहर की कार्यावधि के बीच से
कहानियों को पढ़ने के लिए
पन्द्रह मिनट और चुरा लिए हैं मैंने
अपनी नींद से
कविताओं के लिए
इस तरह
पंखे की तरह दौड़ती हुई ज़िन्दगी में से
प्रतिदिन चुरा लेता हूँ मैं
पौने दो घंटे क़िताबों के लिए
इन पौने दो घंटे ही
रहता हूँ मैं मनुष्य
बाक़ी समय पंखा, रेलगाड़ी, हवाई जहाज़, कंप्यूटर
और ई-मेल में तब्दील रहता हूँ
एक गंतव्य से दूसरे
और दूसरे से फिर-फिर पहले की तरफ़
दौड़ लगाते हुए