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"भूख और रात / बाल गंगाधर 'बागी'" के अवतरणों में अंतर
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यूं कई भूखंे जब रात में तड़पती हैं | यूं कई भूखंे जब रात में तड़पती हैं | ||
− | सुबह किस | + | सुबह किस दहलीज तक पहुंचती हैं |
जहाँ चाँद न हो और जुगनू का शमा | जहाँ चाँद न हो और जुगनू का शमा | ||
रात ऐसे में कैसे करवटें बदलती है | रात ऐसे में कैसे करवटें बदलती है | ||
मुर्गे की तरह दर्द न जब बोल सके | मुर्गे की तरह दर्द न जब बोल सके | ||
− | भोर की | + | भोर की आरजू उम्मीद में बदलती है |
चिन्गारियां राख में दबी सिमट गयीं | चिन्गारियां राख में दबी सिमट गयीं | ||
आंसू बिन आंख रो-रो क्या कहती है | आंसू बिन आंख रो-रो क्या कहती है |
23:19, 23 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण
यूं कई भूखंे जब रात में तड़पती हैं
सुबह किस दहलीज तक पहुंचती हैं
जहाँ चाँद न हो और जुगनू का शमा
रात ऐसे में कैसे करवटें बदलती है
मुर्गे की तरह दर्द न जब बोल सके
भोर की आरजू उम्मीद में बदलती है
चिन्गारियां राख में दबी सिमट गयीं
आंसू बिन आंख रो-रो क्या कहती है
उजाले न मिलने की कोई आस नहीं
ना उम्मीदी ऐसी हवा भेज देती है
उन राहों को सदा मिल न सका कुछ
दर्द की आग तमन्ना3 में जो जलती है
मेरी बच्ची संग सवर्णों ने रेप किया
वो हर याद मेरी आखें फोड़ देती है
किसी रेप की आवाज भले होती नहीं
हर मजलूम को जो, ‘बाग़ी’ बना देती है