भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीलिया / विनय मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> शहर को...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=विनय मिश्र
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

23:43, 6 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

शहर को कुछ हो गया है
पीलिया-सा

आंँख में भी रंग है
उसका सजीला
यह नहीं कि
झूठ का है रंग पीला
रह रहा है सबमें वो ही
भेदिया-सा

आदतों से इक मशीनी
है क़वायद
आदमी से चेतना की
गंध गायब
चेहरे में है कोई
बहुरूपिया-सा

खोखले संवाद में हैं
शब्द केवल
हम खुशी के आंँसुओं में
पी रहे छल
खींचती है एक चुप्पी
 हाशिया-सा।