भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुबह की तस्वीरें-2 / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार }} ::सु...) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार | |संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
::सुबह फूलों की महक जग में बिखरती। | ::सुबह फूलों की महक जग में बिखरती। | ||
− | |||
सैर को निकले हुओं का हृदय हरती। | सैर को निकले हुओं का हृदय हरती। | ||
− | |||
--लड़कियाँ, लड़के, बड़े, बूढे, जवान, | --लड़कियाँ, लड़के, बड़े, बूढे, जवान, | ||
− | |||
लम्बे-तगड़े, छोटे-बौने, पहलवान, | लम्बे-तगड़े, छोटे-बौने, पहलवान, | ||
− | |||
प्रेमिकाएँ, पड़ोसी, अफ़सर ,कि हों अनजान, | प्रेमिकाएँ, पड़ोसी, अफ़सर ,कि हों अनजान, | ||
− | |||
भिखारी के भेस में फिरते हुए भगवान -– | भिखारी के भेस में फिरते हुए भगवान -– | ||
− | |||
सभी में उठती ख़ुशी की एक तान, | सभी में उठती ख़ुशी की एक तान, | ||
− | |||
गूँजता सबमें ख़ुशी का एक गान। | गूँजता सबमें ख़ुशी का एक गान। | ||
− | |||
बस, तभी अज्ञात-सी कोई लहर आती | बस, तभी अज्ञात-सी कोई लहर आती | ||
− | |||
सभी के कूल मन के भीग जाते, | सभी के कूल मन के भीग जाते, | ||
− | |||
पुलक की बूंदें छहरतीं, | पुलक की बूंदें छहरतीं, | ||
− | |||
घास पर ठिठके हुए जलबिन्दु: | घास पर ठिठके हुए जलबिन्दु: | ||
− | |||
पहले काँपते, फिर : | पहले काँपते, फिर : | ||
− | |||
मुस्कराकर भूमि में अस्तित्व खो देते : | मुस्कराकर भूमि में अस्तित्व खो देते : | ||
− | |||
हवा जग में मदिर मधु-गन्ध का संचार करती, | हवा जग में मदिर मधु-गन्ध का संचार करती, | ||
− | |||
और लगता- | और लगता- | ||
− | |||
साँस मानो ले रही है: | साँस मानो ले रही है: | ||
− | |||
पेड़-पौधों, फूल-पत्तों, किरनपाशों | पेड़-पौधों, फूल-पत्तों, किरनपाशों | ||
− | |||
में बंधी ख़ामोश धरती। | में बंधी ख़ामोश धरती। | ||
− | |||
सुबह फूलों की महक जग में बिखरती। | सुबह फूलों की महक जग में बिखरती। | ||
+ | </poem> |
19:37, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।
सैर को निकले हुओं का हृदय हरती।
--लड़कियाँ, लड़के, बड़े, बूढे, जवान,
लम्बे-तगड़े, छोटे-बौने, पहलवान,
प्रेमिकाएँ, पड़ोसी, अफ़सर ,कि हों अनजान,
भिखारी के भेस में फिरते हुए भगवान -–
सभी में उठती ख़ुशी की एक तान,
गूँजता सबमें ख़ुशी का एक गान।
बस, तभी अज्ञात-सी कोई लहर आती
सभी के कूल मन के भीग जाते,
पुलक की बूंदें छहरतीं,
घास पर ठिठके हुए जलबिन्दु:
पहले काँपते, फिर :
मुस्कराकर भूमि में अस्तित्व खो देते :
हवा जग में मदिर मधु-गन्ध का संचार करती,
और लगता-
साँस मानो ले रही है:
पेड़-पौधों, फूल-पत्तों, किरनपाशों
में बंधी ख़ामोश धरती।
सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।