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"सुबह की तस्वीरें-2 / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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::सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।
 
::सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।
 
  
 
सैर को निकले हुओं का हृदय हरती।
 
सैर को निकले हुओं का हृदय हरती।
 
 
--लड़कियाँ, लड़के, बड़े, बूढे, जवान,
 
--लड़कियाँ, लड़के, बड़े, बूढे, जवान,
 
 
लम्बे-तगड़े, छोटे-बौने, पहलवान,
 
लम्बे-तगड़े, छोटे-बौने, पहलवान,
 
 
प्रेमिकाएँ, पड़ोसी, अफ़सर ,कि हों अनजान,
 
प्रेमिकाएँ, पड़ोसी, अफ़सर ,कि हों अनजान,
 
 
भिखारी के भेस में फिरते हुए भगवान -–
 
भिखारी के भेस में फिरते हुए भगवान -–
 
 
सभी में उठती ख़ुशी की एक तान,
 
सभी में उठती ख़ुशी की एक तान,
 
 
गूँजता सबमें ख़ुशी का एक गान।
 
गूँजता सबमें ख़ुशी का एक गान।
 
  
 
बस, तभी अज्ञात-सी कोई लहर आती  
 
बस, तभी अज्ञात-सी कोई लहर आती  
 
 
सभी के कूल मन के भीग जाते,
 
सभी के कूल मन के भीग जाते,
 
 
पुलक की बूंदें छहरतीं,
 
पुलक की बूंदें छहरतीं,
 
 
घास पर ठिठके हुए जलबिन्दु:
 
घास पर ठिठके हुए जलबिन्दु:
 
 
पहले काँपते, फिर :
 
पहले काँपते, फिर :
 
 
मुस्कराकर भूमि में अस्तित्व खो देते :
 
मुस्कराकर भूमि में अस्तित्व खो देते :
 
 
हवा जग में मदिर मधु-गन्ध का संचार करती,
 
हवा जग में मदिर मधु-गन्ध का संचार करती,
 
 
और लगता-
 
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साँस मानो ले रही है:
 
साँस मानो ले रही है:
 
 
पेड़-पौधों, फूल-पत्तों, किरनपाशों
 
पेड़-पौधों, फूल-पत्तों, किरनपाशों
 
 
में बंधी ख़ामोश धरती।
 
में बंधी ख़ामोश धरती।
 
  
 
सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।
 
सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।
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19:37, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।

सैर को निकले हुओं का हृदय हरती।
--लड़कियाँ, लड़के, बड़े, बूढे, जवान,
लम्बे-तगड़े, छोटे-बौने, पहलवान,
प्रेमिकाएँ, पड़ोसी, अफ़सर ,कि हों अनजान,
भिखारी के भेस में फिरते हुए भगवान -–
सभी में उठती ख़ुशी की एक तान,
गूँजता सबमें ख़ुशी का एक गान।

बस, तभी अज्ञात-सी कोई लहर आती
सभी के कूल मन के भीग जाते,
पुलक की बूंदें छहरतीं,
घास पर ठिठके हुए जलबिन्दु:
पहले काँपते, फिर :
मुस्कराकर भूमि में अस्तित्व खो देते :
हवा जग में मदिर मधु-गन्ध का संचार करती,
और लगता-
साँस मानो ले रही है:
पेड़-पौधों, फूल-पत्तों, किरनपाशों
में बंधी ख़ामोश धरती।

सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।