भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जीवन / कीर्ति चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कीर्ति चौधरी }} एक जीवन मिला था उसे जिया नहीं वह अमृत-घ...)
 
पंक्ति 39: पंक्ति 39:
  
 
उन सपनों को--जो दिखे नहीं।
 
उन सपनों को--जो दिखे नहीं।
 +
 +
 +
बीत गई उमर
 +
 +
अौर एक अदद जीवन
 +
 +
यों ही बिना जिए
 +
 +
अंदर से भरा
 +
 +
अौर ऊपर से रिक्त ।

00:09, 26 अगस्त 2008 का अवतरण

एक जीवन मिला था

उसे जिया नहीं

वह अमृत-घट था

उसे पिया नहीं


भरमते रहे

प्यासे अौर निरीह

उस झरने की खोज में

जो अंदर था

बंद अौर ठहरा हुआ

उसे अपने को दिया नहीं


माँगते रहे प्यार अौर आश्वासन

कृपण हो गए हैं लोग

दुहराते रहे बार-बार

खुद को कुछ दिया नहीं

खोजते रहे अलंकरण

सजाने के

उन सपनों को--जो दिखे नहीं।


बीत गई उमर

अौर एक अदद जीवन

यों ही बिना जिए

अंदर से भरा

अौर ऊपर से रिक्त ।