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Kavita Kosh से
भरमते रहे
प्यासे अौर और निरीह
उस झरने की खोज में
जो अंदर था
बंद अौर और ठहरा हुआ
उसे अपने को दिया नहीं
कृपण हो गए हैं लोग
बीत गई उमर
यों ही बिना जिए
अंदर से भरा