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"जीवन / कीर्ति चौधरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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भरमते रहे | भरमते रहे | ||
− | प्यासे | + | प्यासे और निरीह |
उस झरने की खोज में | उस झरने की खोज में | ||
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जो अंदर था | जो अंदर था | ||
− | बंद | + | बंद और ठहरा हुआ |
उसे अपने को दिया नहीं | उसे अपने को दिया नहीं | ||
− | + | मांगते रहे प्यार और आश्वासन | |
कृपण हो गए हैं लोग | कृपण हो गए हैं लोग | ||
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बीत गई उमर | बीत गई उमर | ||
− | + | और एक अदद जीवन | |
यों ही बिना जिए | यों ही बिना जिए | ||
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अंदर से भरा | अंदर से भरा | ||
− | + | और ऊपर से रिक्त । |
10:28, 26 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
एक जीवन मिला था
उसे जिया नहीं
वह अमृत-घट था
उसे पिया नहीं
भरमते रहे
प्यासे और निरीह
उस झरने की खोज में
जो अंदर था
बंद और ठहरा हुआ
उसे अपने को दिया नहीं
मांगते रहे प्यार और आश्वासन
कृपण हो गए हैं लोग
दुहराते रहे बार-बार
खुद को कुछ दिया नहीं
खोजते रहे अलंकरण
सजाने के
उन सपनों को--जो दिखे नहीं।
बीत गई उमर
और एक अदद जीवन
यों ही बिना जिए
अंदर से भरा
और ऊपर से रिक्त ।