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"मन का विश्वास रही हो / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

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हृदय आस मत छोड़ अभी तू
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आते-जाते इस जग में, मन का विश्वास रही हो।
दीप जलेगें फिर से मन में।
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तुम जितनी दूर गई हो, उतने ही पास रही हो।।
  
किया नहीं है प्यार अगर तो
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होठों  से  लाली  छूटी,  रिश्ता  तुमसे  वह छूटा।
यौवन वह यौवन क्या होगा,
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जो  बंधन  था  तुमसे  वह सूखे  पत्तों-सा  टूटा।
जिसमें प्रेमिल चाह नहीं है
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कितनी ही बार लुटे हैं, तुमसे यह प्रीत लगाकर-
वह मन बोलो मन क्या होगा।
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लेकिन मन ने कब माना तुमने ही हमको लूटा।
रूप-रंग-रस-प्रेम भरेगा
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फिर से जीवन के उपवन में।
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अनगिन आँसू को छलका कर
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जो नहीं बुझी, न बुझेगी तुम वैसी प्यास रही हो।
प्रेमिल-यज्ञ ने तृप्ति पाई,  
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हर मन में आघात यही पर
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प्रेमिल पीड़ा, पीर पराई।
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प्रेम-पाप बन गया जगत में
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राधा-मोहन हर आँगन में।
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बिना तपे क्या मोल स्वर्ण का
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कितनी ही बार अहम से परित्याग तुम्हारा करके।
पत्थर, बिना तराशे हीरा,
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‘हम भूल गए हैं तुमको’ यह झूठ हृदय में भरके।
प्रेम-चाह में विष पीकर ही 
+
ख़ुद में साहस बाँधा है उम्मीदों को तज-तज कर-
बनी अधीरा ही थी मीरा। 
+
आँखों में नीर सुखाया इस दिल पर पत्थर धरके।
प्रेम-समर्पण को मत खोना
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वाधा कोई हो जीवन में।
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सच पर यह है जीवन में तुम बनकर श्वास रही हो।
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मैं क्या देखूँ, क्या छोडूँ, सबमें है रूप तुम्हारा।
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तन हार गया है तुमको, लेकिन मन कब है हारा।
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जो मेरे मन की पीड़ा, जो प्राण! तुम्हारी पीड़ा-
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दोनों को गुनता रहता बैठा यह हृदय कुँवारा।
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जिसको जपता रहता हूँ, तुम वह अरदास रही हो।
 
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16:37, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

आते-जाते इस जग में, मन का विश्वास रही हो।
तुम जितनी दूर गई हो, उतने ही पास रही हो।।

होठों से लाली छूटी, रिश्ता तुमसे वह छूटा।
जो बंधन था तुमसे वह सूखे पत्तों-सा टूटा।
कितनी ही बार लुटे हैं, तुमसे यह प्रीत लगाकर-
लेकिन मन ने कब माना तुमने ही हमको लूटा।

जो नहीं बुझी, न बुझेगी तुम वैसी प्यास रही हो।

कितनी ही बार अहम से परित्याग तुम्हारा करके।
‘हम भूल गए हैं तुमको’ यह झूठ हृदय में भरके।
ख़ुद में साहस बाँधा है उम्मीदों को तज-तज कर-
आँखों में नीर सुखाया इस दिल पर पत्थर धरके।

सच पर यह है जीवन में तुम बनकर श्वास रही हो।

मैं क्या देखूँ, क्या छोडूँ, सबमें है रूप तुम्हारा।
तन हार गया है तुमको, लेकिन मन कब है हारा।
जो मेरे मन की पीड़ा, जो प्राण! तुम्हारी पीड़ा-
दोनों को गुनता रहता बैठा यह हृदय कुँवारा।

जिसको जपता रहता हूँ, तुम वह अरदास रही हो।