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"रक्त नीला / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

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उंगलियों ने अभी-अभी ही तो
 
उंगलियों ने अभी-अभी ही तो
 
 
बुनी थी
 
बुनी थी
 
 
घास की एक अंगूठी
 
घास की एक अंगूठी
 
 
उंगली के आस-पास
 
उंगली के आस-पास
 
 
कि दिन
 
कि दिन
 
 
हवा की हथेली पर
 
हवा की हथेली पर
 
 
धूप रख गया
 
धूप रख गया
 
 
भीड़ अपने रास्ते नापती
 
भीड़ अपने रास्ते नापती
 
 
अंधेरे की पगडंडियाँ बनाती
 
अंधेरे की पगडंडियाँ बनाती
 
 
चली जाती है ,
 
चली जाती है ,
 
 
मिट्टी के ऊपर आई  
 
मिट्टी के ऊपर आई  
 
 
पेड़ की जड़ों की नसें
 
पेड़ की जड़ों की नसें
 
 
बहुत बूढ़ी हो गई लगती हैं ,
 
बहुत बूढ़ी हो गई लगती हैं ,
 
 
पहाड़ तक  
 
पहाड़ तक  
 
 
खाली हैं पठार
 
खाली हैं पठार
 
 
पंखों को पीठ के पीछे मिलाती  
 
पंखों को पीठ के पीछे मिलाती  
 
 
सर्राती चिड़िया
 
सर्राती चिड़िया
 
 
नदी किनारे लुढ़की गागर पर बैठ
 
नदी किनारे लुढ़की गागर पर बैठ
 
 
गाती है बार-बार
 
गाती है बार-बार
 
 
एक कोई गीत
 
एक कोई गीत
 
 
आकाश दोहराता है उसे  
 
आकाश दोहराता है उसे  
 
 
और पोर
 
और पोर
 
 
समझ जाते हैं
 
समझ जाते हैं
 
 
कलम का तो
 
कलम का तो
 
 
रक्त तक  
 
रक्त तक  
 
 
नीला होता है ।
 
नीला होता है ।

23:01, 10 जून 2013 के समय का अवतरण

उंगलियों ने अभी-अभी ही तो
बुनी थी
घास की एक अंगूठी
उंगली के आस-पास
कि दिन
हवा की हथेली पर
धूप रख गया
भीड़ अपने रास्ते नापती
अंधेरे की पगडंडियाँ बनाती
चली जाती है ,
मिट्टी के ऊपर आई
पेड़ की जड़ों की नसें
बहुत बूढ़ी हो गई लगती हैं ,
पहाड़ तक
खाली हैं पठार
पंखों को पीठ के पीछे मिलाती
सर्राती चिड़िया
नदी किनारे लुढ़की गागर पर बैठ
गाती है बार-बार
एक कोई गीत
आकाश दोहराता है उसे
और पोर
समझ जाते हैं
कलम का तो
रक्त तक
नीला होता है ।