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उंगलियों ने अभी-अभी ही तो | उंगलियों ने अभी-अभी ही तो | ||
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बुनी थी | बुनी थी | ||
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घास की एक अंगूठी | घास की एक अंगूठी | ||
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उंगली के आस-पास | उंगली के आस-पास | ||
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कि दिन | कि दिन | ||
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हवा की हथेली पर | हवा की हथेली पर | ||
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धूप रख गया | धूप रख गया | ||
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भीड़ अपने रास्ते नापती | भीड़ अपने रास्ते नापती | ||
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अंधेरे की पगडंडियाँ बनाती | अंधेरे की पगडंडियाँ बनाती | ||
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चली जाती है , | चली जाती है , | ||
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मिट्टी के ऊपर आई | मिट्टी के ऊपर आई | ||
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पेड़ की जड़ों की नसें | पेड़ की जड़ों की नसें | ||
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बहुत बूढ़ी हो गई लगती हैं , | बहुत बूढ़ी हो गई लगती हैं , | ||
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पहाड़ तक | पहाड़ तक | ||
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खाली हैं पठार | खाली हैं पठार | ||
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पंखों को पीठ के पीछे मिलाती | पंखों को पीठ के पीछे मिलाती | ||
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सर्राती चिड़िया | सर्राती चिड़िया | ||
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नदी किनारे लुढ़की गागर पर बैठ | नदी किनारे लुढ़की गागर पर बैठ | ||
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गाती है बार-बार | गाती है बार-बार | ||
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एक कोई गीत | एक कोई गीत | ||
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आकाश दोहराता है उसे | आकाश दोहराता है उसे | ||
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और पोर | और पोर | ||
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समझ जाते हैं | समझ जाते हैं | ||
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कलम का तो | कलम का तो | ||
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रक्त तक | रक्त तक | ||
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नीला होता है । | नीला होता है । |
23:01, 10 जून 2013 के समय का अवतरण
उंगलियों ने अभी-अभी ही तो
बुनी थी
घास की एक अंगूठी
उंगली के आस-पास
कि दिन
हवा की हथेली पर
धूप रख गया
भीड़ अपने रास्ते नापती
अंधेरे की पगडंडियाँ बनाती
चली जाती है ,
मिट्टी के ऊपर आई
पेड़ की जड़ों की नसें
बहुत बूढ़ी हो गई लगती हैं ,
पहाड़ तक
खाली हैं पठार
पंखों को पीठ के पीछे मिलाती
सर्राती चिड़िया
नदी किनारे लुढ़की गागर पर बैठ
गाती है बार-बार
एक कोई गीत
आकाश दोहराता है उसे
और पोर
समझ जाते हैं
कलम का तो
रक्त तक
नीला होता है ।