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"मनवा / अजय सहाब" के अवतरणों में अंतर

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मनवा तू काहे बेचैन रे ?
 
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थोड़ी सह ले रैन रे !
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सबने खोजा ,हाथ न आया
 
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जब तक तृष्णा ,कैसी तृप्ति
 
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जीवन जाल से कैसी मुक्ति
 
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होंगे गीले नैन रे !
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सब के दिल में तुझ सा ग़म है
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सब कुछ पाकर भी कुछ कम है
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फूलों का जीवन भी देखो
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उन पर भी दुःख की शबनम है
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सब कुछ तू है तू है सब में
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इक दिन तो मिलना है रब में
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जब तुझको आभास मिलेगा
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सब कुछ तेरे पास मिलेगा
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मिल जाएगा चैन रे
 
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13:45, 14 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

मनवा तू काहे बेचैन रे ?
अब तक तो पाया है सूरज
थोड़ी सह ले रैन रे

ये जीवन है जैसे साया
सबने खोजा ,हाथ न आया
सागर सागर प्यास मिलेगी
आँखों आँखों आस मिलेगी
जब तक तेरी चाह है लंबी
जीवन की हर राह है लंबी
जब तक तृष्णा ,कैसी तृप्ति
जीवन जाल से कैसी मुक्ति
होंगे गीले नैन रे

सब के दिल में तुझ सा ग़म है
सब कुछ पाकर भी कुछ कम है
फूलों का जीवन भी देखो
उन पर भी दुःख की शबनम है
सब कुछ तू है तू है सब में
इक दिन तो मिलना है रब में
जब तुझको आभास मिलेगा
सब कुछ तेरे पास मिलेगा
मिल जाएगा चैन रे