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|रचनाकार = सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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विपदाएँ आते ही,
 
खुलकर तन जाता है
 
हटते ही
 
चुपचाप सिमट ढीला होता है;
 
वर्षा से बचकर
 
कोने में कहीं टिका दो,
 
प्‍यार एक छाता है
 
आश्रय देता है गीला होता है।
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