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"अंगारों का रास्ता / सुभाष काक" के अवतरणों में अंतर
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आराधित होने के संतोष में। | आराधित होने के संतोष में। | ||
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कुछ स्पष्ट नहीं करते | कुछ स्पष्ट नहीं करते | ||
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मृत्यु हर दिन होती है | मृत्यु हर दिन होती है | ||
तो महाप्रयाण का | तो महाप्रयाण का | ||
क्या भय? | क्या भय? | ||
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10:59, 14 नवम्बर 2013 के समय का अवतरण
आग से आग के वीथि पर
अंगारे बिखरे हैं।
समय थोड़ा है
तलवों के छालों की
पीड़ा से परे हम
भ्रांति की ओर
बढ़ गए।
हम जानते हैं
आकांक्षा है जीवन विधान।
ज्ञानी चुप हैं
और देवता सो रहे
आराधित होने के संतोष में।
दर्शन और मीमांसा
कुछ स्पष्ट नहीं करते
केवल भाव हैं हमारे पास
तो हम क्यों न
ओंठ से ओंठ मिलाएँ।
मृत्यु हर दिन होती है
तो महाप्रयाण का
क्या भय?