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"फागुन गाता है / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
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हाथ बढ़ाकर छू न पाऊँ, | हाथ बढ़ाकर छू न पाऊँ, | ||
इतना बौना कर देती हैं। | इतना बौना कर देती हैं। | ||
− | + | घुँघराली चन्दन-छाया में | |
तन खो जाता है। | तन खो जाता है। | ||
− | + | मुखड़े के इस खिले चाँद को | |
चुपके चूम-चूम लेतीं | चुपके चूम-चूम लेतीं | ||
अधरों पर इतरा-इतराकर | अधरों पर इतरा-इतराकर | ||
खुशबू के उपवन बो देतीं। | खुशबू के उपवन बो देतीं। | ||
बँधा लाज से अल्हड़ यौवन | बँधा लाज से अल्हड़ यौवन | ||
− | + | फागुन गाता है। | |
'''(15-7-1978: अरुण-मुरादाबाद 1982)''' | '''(15-7-1978: अरुण-मुरादाबाद 1982)''' | ||
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08:32, 28 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
अँधियारी अलकों का सावन
मन भरमाता है।
कुलाँचें भरता विरही मेघा-
भी शरमाता है।
इनकी सौंधी वास न जाने
क्या-क्या टोना कर देती हैं।
हाथ बढ़ाकर छू न पाऊँ,
इतना बौना कर देती हैं।
घुँघराली चन्दन-छाया में
तन खो जाता है।
मुखड़े के इस खिले चाँद को
चुपके चूम-चूम लेतीं
अधरों पर इतरा-इतराकर
खुशबू के उपवन बो देतीं।
बँधा लाज से अल्हड़ यौवन
फागुन गाता है।
(15-7-1978: अरुण-मुरादाबाद 1982)
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