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"अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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किसको सौगात भेजती है अभी
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मैं तो समझा था भर चुके सब ज़ख्म
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दाग शायद कोई कोई है अभी
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वो जो दीवानगी थी, वही है अभी
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'''वारफतगी''' - खोया खोयापन, '''इज्तिनाब''' - घृणा, अलगाव
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'''सुपुर्दगी''' - सौंपना, '''खुदकलामी''' - खुद से बातचीत, '''शिगूफ़े'''- फूल, कलियां
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'''चश्मे-पुर-खूं''' - खून से भरी हुई आँख
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'''आबे-जमजम''' - मक्के का पवित्र पानी
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'''अबस''' - बेकार, '''सानी''' - बराबर, दूसरा
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'''कामत''' - लम्बे शरीर वाला (यहाँ कयामत/ज़ुल्म ढाने वाले से मतलब है)
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21:19, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी
इक ग़ज़ल है कि हो रही है अभी

मैं भी शहरे-वफ़ा में नौवारिद
वो भी रुक रुक के चल रही है अभी

मैं भी ऐसा कहाँ का ज़ूद शनास
वो भी लगता है सोचती है कभी

दिल की वारफतगी है अपनी जगह
फिर भी कुछ एहतियात सी है अभी

गरचे पहला सा इज्तिनाब नहीं
फिर भी कम कम सुपुर्दगी है अभी

कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता
बूंदा-बांदी भी धूप भी है अभी

खुद-कलामी में कब ये नशा था
जिस तरह रु-ब-रू कोई है अभी

कुरबतें लाख खूबसूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी

फ़सले-गुल में बहार पहला गुलाब
किस की ज़ुल्फ़ों में टांकती है अभी

सुबह नारंज के शिगूफ़ों की
किसको सौगात भेजती है अभी

मैं तो समझा था भर चुके सब ज़ख्म
दाग शायद कोई कोई है अभी

मुद्दतें हो गईं फ़राज़ मगर
वो जो दीवानगी थी, वही है अभी

नौवारिद - नया आने वाला, ज़ूद-शनास - जल्दी पहचानने वाला
वारफतगी - खोया खोयापन, इज्तिनाब - घृणा, अलगाव
सुपुर्दगी - सौंपना, खुदकलामी - खुद से बातचीत, शिगूफ़े- फूल, कलियां


चश्मे-पुर-खूं - खून से भरी हुई आँख
आबे-जमजम - मक्के का पवित्र पानी
अबस - बेकार, सानी - बराबर, दूसरा
कामत - लम्बे शरीर वाला (यहाँ कयामत/ज़ुल्म ढाने वाले से मतलब है)