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"रूपांतर / जगदीश गुप्त" के अवतरणों में अंतर

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गिरती हुई धारों को
 
गिरती हुई धारों को

04:30, 17 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

गिरती हुई धारों को
तेज़ हवा के झोंके
फुहारों में बदल देते हैं,

दृश्य से परे
देर तक लहराती रहती हैं,
धारों को काटती हुई फुहारें
और फुहारों को काटती हुई धारें

आँख के आगे
हर तरफ़ छा जाता है,
पानी का रूप भी,
रूपांतर भी ।

भीग जाता है,
त्वचा का वन भी,
वनांतर भी ।