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"शहतूत के पेड़ / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर
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− | + | लुट जाता जब सब कुछ अपना । | |
− | + | आँखें सपना देखें कैसे | |
− | + | सपना तो होता है सपना । | |
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− | + | करते नहीं कामना फल की | |
− | + | चेले ये अवधूत के । | |
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03:10, 17 जुलाई 2023 के समय का अवतरण
रेशम के कीड़ों की खातिर
खड़े पेड़ शहतूत के ।
पल भर की निद्रा के भीतर
किन आँखों को लेकर झाँकें ।
पत्ती-पत्ती छिन जाएगी
रह जाएँगी नंगी शाखें ।
साक्षी हैं ये मौन दिगम्बर
माली की करतूत के ।
चिन्ता तो फिर भी बच जाती ,
लुट जाता जब सब कुछ अपना ।
आँखें सपना देखें कैसे
सपना तो होता है सपना ।
करते नहीं कामना फल की
चेले ये अवधूत के ।